-97 सीट पर अकाली और 20 सीटों पर लड़ेगी बसपा
-बंगाल के बाद पंजाब में भी बीजेपी को बड़ा झटका
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल के बाद अब पंजाब में भी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को बड़ा झटका लगा है। बीजेपी नेताओं की फिर से गठबंधन की उम्मीद पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने पानी फेर दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस अपनी अंदरूनी कलह से जूझ रही है। ऐसे में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर पंजाब में एक नया सियासी समीकरण सामने आया है। 2022 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए सुखबीर सिंह बादल की शिरोमणी अकाली दल और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन कर लिया है। बता दें कि पिछले चुनाव में अकाली दल और भाजपा के बीच गठबंधन था।
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बता दें कि पंजाब में दलित आबादी 32 फीसदी के करीब है। लिकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा को महज 1.52 फीसदी ही वोट हासिल हुए थे। गठबंधन का ऐलान कर अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि शिरोमणि अकाली दल और बसपा ने गठबंधन किया है और 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि पंजाब की 117 सीटों में से बसपा 20 सीटों पर और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) शेष 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस दौरान बसपा के महासचिव सतीश चंद्रा भी मौजूद रहे।
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पंजाब में चुनाव लड़ने के लिए बसपा को 20 सीटें दी गई हैं। इनमें जालंधर, करतारपुर साहिब, जालंधर-पश्चिम, जालंधर-उत्तर, फगवाड़ा, होशियारपुर अर्बन, दसूया, रूपनगर जिले में चमकौर साहिब, बस्सी पठाना, पठानकोट में सुजानपुर, मोहाली, अमृतसर उत्तर और अमृतसर सेंट्रल शामिल हैं। अकाली दल के साथ गठबंधन के तहत भाजपा 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी। कहा जा रहा है कि कृषि कानूनों पर भाजपा के प्रति नाराजगी के मद्देनजर पंजाब में अपनी पैठ बनाये रखने के लिए यह गठबंधन एक नए सियासी समीकरण को जन्म देगा।
32 फीसदी दलित आबादी पर बादल की नजर
पंजाब में दलितों की आबादी 32 फीसदी है। लेकिन राज्य के अब तक के इतिहास में कोई दलित सीएम नहीं बना। जाहिर है बड़े वोट बैंक में संभावनाएं तलाशते हुए अकाली दल ने बीएसपी से हाथ मिलाने का फैसला किया है। यूपी में दलितों के बीच मजबूत पैठ रखने वाली बीएसपी के संस्थापक कांशीराम पंजाब के होशियारपुर से आते थे। ऐसे में अकाली दल और बीएसपी की दोस्ती को सियासत में एक नए प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि 25 साल पहले भी दोनों दोस्ती कर चुके हैं। इस बीच अकाली दल के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल ने बीएसपी सुप्रीमो मायावती से फोन पर बात की। बातचीत में उन्होंने मायावती से कहा कि ’हम आपको जल्द ही पंजाब का दौरा करने के लिए आमंत्रित करेंगे।’
दोआबा क्षेत्र में बीएसपी की ताकत
पंजाब में बीएसपी के प्रभाव पर नजर डालें तो दोआबा इलाके में पार्टी का असर है। होशियारपुर, कपूरथला, जालंधर और नवांशहर इसी इलाके में आते हैं। बहुजन समाज पार्टी ने इस साल फरवरी में हुए नगर निकाय चुनाव के दौरान यहां अच्छी मौजूदगी दर्ज कराई थी। इन नगर निगमों में पार्टी ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं इन चार जिलों में बीजेपी सिर्फ 8 सीटों पर कामयाब हुई थी। दूसरी ओर अकाली दल के सिंबल पर 20 उम्मीदवार जीते थे। दोआबा इलाके में आम आदमी पार्टी ने भी नगर निगम की 11 सीटें जीती थीं।
मायावती ने बताया ऐतिहासिक कदम
मायावती ने सिलसिलेवार तीन ट्वीट करते हुए कहा है कि ’पंजाब में आज शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी द्वारा घोषित गठबंधन एक नई राजनीतिक और सामाजिक पहल है, जो निश्चय ही यहां राज्य में जनता के बहु-प्रतीक्षित विकास, प्रगति व खुशहाली के नए युग की शुरुआत करेगा। इस ऐतिहासिक कदम के लिए लोगों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। वैसे तो पंजाब में समाज का हर तबका कांग्रेस पार्टी के शासन में यहां व्याप्त गरीबी, भ्रष्टाचार व बेरोजगारी आदि से जूझ रहा है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा मार दलितों, किसानों, युवाओं व महिलाओं आदि पर पड़ रही है, जिससे मुक्ति पाने के लिए अपने इस गठबंधन को कामयाब बनाना बहुत जरूरी। साथ ही पंजाब की समस्त जनता से पुरजोर अपील है कि वे अकाली दल व बीएसपी. के बीच आज हुए इस ऐतिहासिक गठबंधन को अपना पूर्ण समर्थन देते हुए यहां 2022 के प्रारम्भ में ही होने वाले विधानसभा चुनाव में इस गठबंधन की सरकार बनवाने में पूरे जी-जान से अभी से ही जुट जाएं।’
मांझा-मालवा में अकाली दल का जोर
25 साल बाद अकाली दल और बीएसपी साथ आए हैं। बात करें माझा और मालवा इलाके की तो यहां अकाली दल की तगड़ी पैठ रही है। मालवा इलाके में 67 विधानसभा सीटें आती हैं। बीजेपी के साथ गठबंधन में अकाली दल को यहां हिंदू वोटों का लाभ मिलता रहा है। लेकिन इस बार बीजेपी से अलग होने की वजह से अकाली दल ने रणनीति बदली है। सुखबीर सिंह बादल ने इलाके में लगातार दौरे किए हैं। दलितों के साथ-साथ हिंदू वोटरों को भी पाले में करने के लिए पार्टी जुगत लगा रही है। अकाली दल को पता है कि पंजाब की दो ध्रुव वाली राजनीति में सत्ता के लिए 40 प्रतिशत या उसके आसपास वोट हासिल करना जरूरी है। आम आदमी पार्टी ने पिछले चुनाव में जरूर पैठ बनाई थी। लेकिन इस बार चुनाव से पहले ही पार्टी बिखरी दिख रही है।
निकाय चुनाव में रहा कैप्टन का जलवा
इसी साल फरवरी में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस ने रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल की थी। 8 नगर निगम और 109 नगर पालिका-नगर परिषदों (117 स्थानीय निकाय) के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने अकालियों से उनका गढ़ भी छीन लिया था। बठिंडा, कपूरथला, होशियारपुर, पठानकोट, बटाला, मोगा और अबोहर नगर निगमों में कांग्रेस को भारी जीत हासिल हुई थी। बठिंडा नगर निगम पर पांच दशक में पहली बार कांग्रेस ने कब्जा जमाया है। प्रकाश सिंह बादल का पैतृक गांव बादल गांव बठिंडा में ही आता है। अकाली दल को यहां करारी शिकस्त मिली और 53 साल में पहली बार यहां कांग्रेस के पास मेयर की कुर्सी आ गई। इन नतीजों में बीजेपी को भी झटका लगा था। अकाली दल से उसका गठबंधन पहले ही टूट चुका था। गुरदासपुर से बीजेपी के सनी देओल सांसद हैं, इसके बावजूद शहर के सभी 29 वॉर्ड कांग्रेस के खाते में गए थे।
इस तरह रहे थे 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजे
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के उभार के बीच बड़ी जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने 117 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 77 सीटों पर विजय पताका फहराई थी। पार्टी को 38.5 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे। वहीं आम आदमी पार्टी ने पहली बार चुनाव लड़कर लंबी छलांग लगाई। केजरीवाल की पार्टी ने 112 सीटों पर चुनाव लड़कर 20 सीटें हासिल कीं। हालांकि पार्टी को 23.7 प्रतिशत वोट मिले, जो अकाली दल से करीब 1.5 फीसदी कम था। अकाली दल ने 94 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 15 सीटें जीतीं। पार्टी को कुल 25.24 फीसदी वोट हासिल हुए। वहीं अकाली दल की गठबंधन सहयोगी बीजेपी ने 23 सीटों पर चुनाव लड़कर 3 सीटों पर जीत हासिल की थी। बीजेपी को कुल 5.39 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं बीएसपी ने 111 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन उसका खाता तक नहीं खुला और पार्टी को सिर्फ 1.52 प्रतिशत वोट से संतोष करना पड़ा।
1996 में बीएसपी-अकाली ने जीतीं 11 लोकसभा सीट
अकाली दल ने ऐलान किया है कि अगर उसकी सरकार बनती है तो पंजाब में बसपा का उपमुख्यमंत्री होगा। 1992 में बीएसपी का वोट शेयर 16 फीसदी था और पार्टी ने 9 विधानसभा सीटें जीती थीं। वहीं 1996 में बीएसपी और अकाली दल ने गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए 13 में से 11 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव आते-आते बीएसपी का वोट शेयर 2 प्रतिशत से कम हो गया। 2019 में भी बीएसपी का यही हाल रहा। दलित वोटों के ट्रांसफर और अपने बेस वोट बैंक के सहारे अकाली दल चुनावी वैतरणी पार करने की भले ही सोच रहा हो, लेकिन यह इतना आसान नहीं होगा।