नॉर्थ DMC मैरिट में पिछड़ी विज्ञापन कंपनियों के सहारे उत्तरी निगम का प्रेस एवं सूचना निदेशालय

-इम्पैनल्ड विज्ञापन कंपिनयों द्वारा विज्ञापन छापने से इनकार के बाद दक्षिणी दिल्ली निगम की कंपनियों का सहारा
-सबसे बड़ा सवालः कैसे लगेंगे पार्षद फंड से जुड़े टेंडर? नई कंपनियों की प्रक्रिया में लगेगा ज्यादा समय

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
पार्षद फंड और दूसरे कामों के एनआईटी के विज्ञापन अखबारों में छपवाने से विज्ञापन कंपनियों के इनकार के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम में बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। निगम आयुक्त से बार-बार झाड़ खाने के बाद नये प्रेस एवं सूचना विभाग के उपायुक्त जितेंद्र कुमार जैन ने दक्षिणी दिल्ली नगर निगम का काम देखने वाली 8 में से चार विज्ञापन कंपनियों से उत्तरी दिल्ली का काम कराने की कवायद शुरू की है। बताया जा रहा है कि यह वहीं कंपनियां हैं जो पैनल में शामिल किये जाते समय विभिन्न मानकों के आधार पर मैरिट में पिछड़ गई थीं।

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बताया जा रहा है कि इन कंपनियों को उत्तरी दिल्ली नगर निगम के पैनल में शामिल करवाने के लिए दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के प्रेस एवं सूचना निदेशक संजय सहाय बहुत ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। वह आजकल कई-कई घंटे सिविक सेंटर के ए ब्लॉक में आकर जितेंद्र कुमार जैन के कार्यालय में बैठ रहे हैं। अब सवाल यह खड़ा हो गया है कि जब तक यह नई कंपनियां उत्तरी दिल्ली के पैनल में शामिल हो पाएंगीं तब तक नगर निगम का चुनाव सिर पर आ जायेगा। ऐसे में निगम पार्षदों को मिला 50 लाख का फंड कैसे उपयोग में आ पायेगा? तब तक इसके लैप्स होने की नौबत आ जायेगी।

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नई विज्ञापन कंपनियों को पैनल में शामिल करने के लिए पूरी प्रक्रिया को अपनाया जाता है। पहले कंपनियों से आवेदन मांगे जाते हैं, फिर उनमें से विभिन्न मानकों के आधार पर वरीयता वाली कंपनियों का चयर किया जाता है। इसके पश्चात उन्हें पैनल में शामिल करने के लिए स्थायी समिति और नगर निगम के सदन से पास कराया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब 6 से 9 महीनों का समय लग जाता है। जबकि नगर निगमों के चुनाव के लिए महज पांच महीने का समय रह गया है। इसमें भी दिसंबर में नगर निगम का बजट पारित किया जायेगा और जनवरी-फरवरी से आचार संहिता लागू होने की उम्मीद है।

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गौरतलब है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम में 6 विज्ञापन कंपनियां पैनल मे हैं जबकि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में 8 विज्ञापन कंपनियां पैनल में शामिल हैं। दक्षिणी दिल्ली की 8 में से 4 कंपनियां वही हैं, जो कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के पैनल में हैं। उत्तरी दिल्ली की सभी 6 विज्ञापन कंपनियों ने नगर निगम के विज्ञापन छपवाने से इनकार कर दिया है और निगम अधिकारियों पर अपनी बकाया राशि के भुगतान के लिए दबाव बनाना तेज कर दिया है। कुछ कंपनियां अपने बकाया की वसूली के लिए कोर्ट जाने की तैयारी में भी हैं। कारण है कि बीते करीब दो वर्षो से इन कंपनियों का बकाया तेजी से बढ़ता जा रहा है।
प्रशासनिक असफलता का बड़ा नमूना
नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब पैनल में शामिल विज्ञापन कंपनियों ने उत्तरी निगम के विज्ञापन अखबारों में छपवाने से मना कर दिया हो। आर्थिक संकट लंबे समय से चला आ रहा है, लेकिन इसके बावजूद अब तक नगर निगम के काम कभी रूके नहीं थे। बताया जा रहा है कि पिछले दिनों विज्ञापन कंपनियों से एक अधिकारी ने कमीशन की मांग भी की थी। गौरतलब है कि पी एंड आई उपायुक्त ने अपने कार्यालय के कुछ कर्मचारियों पर दबाव बनाया है कि वह खुद विज्ञापनों को डिजायन करके विभिन्न समाचार पत्रों में छपवाने की व्यवस्था करें। जबकि निगम के प्रेस एवं सूचना निदेशालय में कोई डिजायनर है ही नहीं।
बीजेपी नेता और अधिकारी जिम्मेदारः कांग्रेस
उत्तरी दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस दल के नेता मुकेश गोयल का कहना है कि यह स्थिति कोई एक-दो दिन में नहीं आई है। यह लंबे समय से चली आ रही अधिकारियों की प्रशासनिक लापरवाही और निगम नेतृत्व की लापरवाही और नगर निगम के हितों के प्रति उदासीनता का परिणाम है। पिछले वर्षों में पार्षदों को कोई फंड नहीं दिया गया और इस वर्ष 50 लाख रूपये की घोषणा की गई तो विज्ञापन कंपनियों ने टेंडर के विज्ञापन छपवाने से हाथ खड़े कर दिये हैं। ठेकेदारों की बहुत बड़ी राशि पहले ही नगर निगम की ओर बकाया है। ऐसे में ठेकेदारों की दिलचस्पी भी काम के प्रति नहीं रही है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति लाने के लिए नगर निगम के कुछ अधिकारी और सत्ताधारी बीजेपी के नेता जिम्मेदार हैं। उनके अंदर ना तो नेतृत्व करने की क्षमता है और नाही नगर निगम के हितों के प्रति कोई दिलचस्पी है।
इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थित नहीं हो सकतीः आप
आम आदमी पार्टी के निगम पार्षद और उत्तरी दिल्ली नगर निगम में विपक्ष के नेता विकास गोयल ने कहा कि नगर निगम के लिए इससे ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति नहीं हो सकती कि प्रशासनिक अक्षमता के चलते विज्ञापन कंपनियों ने अखबारों में एनआईटी के विज्ञापन छपवाने से ही इनकार कर दिया। यह भारतीय जनता पार्टी के पिछले 15 वर्षों के शासनकाल में हुए भ्रष्टाचार का ही असर है कि आज विज्ञापन कंपनियों का ही करोड़ों रूपये बकाया हो गया है। बीजेपी ने आने वाले चुनाव को देखते हुए 55 लाख रूपये के फंड की घोषणा की थी, लेकिन ठेकेदारों का भुगतान 2015 से नहीं हो पाने की वजह से वह पहले ही नये टैंडर लेने के लिए तैयार नहीं हैं। यदि वह लेना भी चाहें तो अब विज्ञापन कंपनियां टेंडर के विज्ञापन ही नहीं छपवा रही हैं।