नरेला अनाज मंडीः शैड के नाम पर…. नगर निगम की 500 करोड़ की संपत्ति दांव पर!

-स्थायी समिति में आया नरेला की पुरानी अनाज मंडी की करीब 500 करोड़ की संपत्तियों को आढ़तियों को देने का प्रस्ताव

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
एक ओर नगर निगम में सत्ताधारी दल बीजेपी के नेता नगर निगम की मौजूदा संपत्तियों को बेचने में जुटे हैं, दूसरी ओर निगम की अपनी ही संपत्तियों को अवैध कब्जाधारियों से खाली नहीं करवा पा रहे हैं। नरेला की पुरानी अजाज मंडी के मामले में तो खुद बीजेपी के नेताओं ने ही नगर निगम की करीब 500 करोड़ रूपये की अचल संपत्तियों यानी कि कमर्शियल जमीन को ही दांव पर लगा दिया है। हालांकि फिलहाल इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया है।

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नरेला की पुरानी अनाज मंडी की 100 साल से भी ज्यादा पहले लीज पर दी गई शेड की जमीन की 70 संपत्तियों को नियमित करने यानी कि पुराने आढ़तियों व उनके वारिशों को स्थायी तौर पर देने के प्रस्ताव को बुधवार 13 अक्टूबर की स्थायी समिति की बैठक में लाया गया। स्थायी समिति की बैठक में लाये गये इस प्राईवेट प्रस्ताव में इन आलीशान दुकानों को शैड बताया गया है। जबकि यहां हर शेड की जगह पर आलीशान शॉपिंग कॉम्पलैक्स खड़े किये जा चुके हैं। बताया जा रहा है कि इस जमीन की मौजूदा कीमत करीब 500 करोड़ रूपये है।

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दरअसल 110 साल पूर्व नरेला में अनाज मंडी स्थापित की गई थी। तब यहां अनाज बेचने के लिए कुछ आढ़तियों को 99 साल की लीज पर शैड की जगह उपलब्ध कराई गई थी। ऐसे करीब 70 आढ़ती हैं। इन लोगों की लीज करीब 10 साल पूर्व ही खत्म हो चुकी है। हालांकि बताया यह जा रहा है कि यह लीज 2018 में खत्म हुई है। खास बात है कि इनमें से ज्यादातर लोगों को नरेला की नई अनाज मंडी में नई दुकानों की जगह भी मिल गई है।

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लेकिन लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पुरानी अनाज मंडी में अपना कब्जा नहीं छोड़ा है। बल्कि यहां आगे-पीछे और दांये-बांये की सरकारी जमीन को शेड की जमीन में मिलाकर अवैध कब्जे के जरिये आलीशान इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। सीधे तौर पर कहें तो यहां अब एक भी अनाज की दुकान या आढ़त बची ही नहीं है। अनाज बेचने के लिए दी गई शैड की जगह पर कॉमर्शियल कॉम्पलैक्स खड़े किये जा चुके हैं। इनसे पुराने अलाटियों को लाखों रूपये महीने की कमाई हो रही है। उन्हीं तथाकथित शैड में बनाई गई दुकानों को करोड़ों रूपये में बेचा जा रहा है, लेकिन नगर निगम को अपनी इस जमीन से कोई राजस्व प्राप्त नहीं हो रहा है।

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आश्चर्य की बात है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के रिकॉर्ड में अब भी इस जगह पर शैड हैं और उन्हें नियमित करके पूरी तरह से मालिकाना हक देने के लिए स्थायी समिति की बैठक में भाग-ख के तहत प्रस्ताव संख्या 15 लाया गया था। खास बात है कि नरेला वार्ड सिंमति में पास कराने के बाद स्थायी समिति में लाये गये इस प्राईवेट प्रस्ताव में कहा गया है कि नरेला की पुरानी अनाज मंडी उत्तरी दिल्ली नगर निगम की प्रॉपर्टी है। पुरानी अनाज मंडी 110 साल पहले लीज पर दी गई थी। इन आढ़तियों को सामान बेचने के लिए केवल शैड लीज पर दिये गये थे। लेकिन अब प्रस्ताव में उन शैड की जमीन को भी उन्हीं आढ़तियों को देने के लिए प्रस्ताव लाया गया है।
वर्तमान दरों के बजाय मुफ्त में देने का प्रस्ताव!
बुधवार को स्थायी समिति में लाये गये प्रस्ताव में कहीं भी इस जमीन के लिए जमीन की वर्तमान बाजार भाव से कीमत वसूलने की बात नहीं की गई है। ना ही इस जमीन को लीज खत्म होने के बाद कब्जाधारियों से खाली कराने की बात की गई है। ऐसे में यह प्रस्ताव सीधे तौर पर उत्तरी दिल्ली नगर निगम को 500 करोड़ रूपये का चूना लगाने वाला साबित होने वाला है। इस प्रस्ताव को लाने वालों में उत्तरी दिल्ली नगर निगम में सदन के पूर्व नेता और नरेला जोन के चेयरमैन रह चुके बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं। गौरतलब है कि यह प्रस्ताव नगर निगम की ओर से नहीं बल्कि दिल्ली बीजेपी नेताओं की ओर से ही लाया गया है।
बीजेपी की पुरानी और नई संपत्तियों की लीज की नीति पर सवाल
कुछ इसी तरह के प्रस्ताव हालिया समय में भी सत्ताधारी बीजेपी नेताओं के द्वारा स्थायी समिति में लाये गये हैं, जिनमें नगर निगम की कई महत्वपूर्ण संपत्तियों को 99 साल की लीज पर देने का प्रस्ताव है। इनमे सबसे प्रमुख पुरानी दिल्ली के नावल्टी सिनेमा को लीज पर दिया गया है। इसके अलावा पीली कोठी पर भी सरकारी जमीन को लीज पर देने का प्रस्ताव लाया गया था। इस मामले में सत्ताधारी दल बीजेपी नेताओं का कहना है कि नगर निगम इन संपत्तियों को लीज पर दे रहा है, बेच नहीं रहा है। यदि यह बात सही है तो नरेला की पुरानी अनाज मंडी की जमीन को भी 70 अलाटियों से खाली कराना चाहिए, क्योंकि अब उनकी लीज खत्म हो गई है। यदि नरेला की अरबों रूपये की यह जमीन खाली नहीं कराई जाती है तो बीजेपी नेतृत्व की नीयत पर सवाल उठने लाजमी हैं।
नगर निगम को मिले राजस्वः विजेंद्र
हालांकि इस मामले में उत्तरी दिल्ली नगर निगम में स्थायी समिति के पूर्व उपाध्यक्ष बिजेंद्र यादव ने कहा कि यह जमीन नगर निगम की है। बताया जा रहा है कि ज्यादातर आढ़तियों को नई अनाज मंडी में जगह मिल चुकी है। अतः नगर निगम की यह जमीन कब्जाधारियों से खाली कराई जानी चाहिए। उन्होंने बुधवार को स्थायी समिति की बैठक में कहा कि यदि उन्हीं लोगों को यह जमीन दी जानी है तो उनसे वर्तमान कीमत पर नगर निगम के लिए राजस्व मिलना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि पुरानी नरेला मंडी में अब कोई आढ़ती या शेड नहीं बचे हैं। यहां अनाज का कारोबार बंद हो चुका है और बड़े बड़े इलेक्ट्रिकल और इलैक्ट्रॉनिक्स के शोरूम खुल चुके हैं। यह जानकारी भी मिली है कि यहां जो शॉपिंग कॉम्पलैक्स खड़े किये गये हैं, उनके नक्शे तक पास नहीं कराये गये हैं। शेड की आस पास की सरकारी जमीन को कब्जे में लेकर बड़ी बड़ी दुकानें बनाई जा चुकी हैं। नगर निगम की जमीन से नगर निगम को राजस्व मिलना चाहिए।
फिलहाल प्रस्तावों को स्थिगित किया गयाः जोगीराम
उत्तरी दिल्ली नगर निगम में स्थायी समिति के अध्यक्ष जोगीराम जैन ने कहा कि नरेला की पुरानी अनाज मंडी से संबंधित दो प्रस्ताव स्थायी समिति में लाये गये थे, दोनों प्रस्तावों को फिलहाल स्थगित कर दिया गया है। अधिकारियों से वस्तुस्थिति की जानकारी ली जायेगी और इसके बाद जमीनी हकीकत पर गौर करते हुए ही कोई निर्णय लिया जायेगा। इसके संबंध में कानूनी स्थिति की जानकारी भी मांगी जा रही है। इसके पश्चात ही किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकेगा।