महापौर चुनावः बीजेपी के सामने ‘आप’ की रणनीति का तोड़ निकालने की चुनौती

-नये महापौरों को मिलेगा 6 से 8 माह का कार्यकाल
-जून तक होगी समिति-उपसमितियों की घोषणा
-‘आप’ ने अपने विपक्ष के नेताओं का बढ़ाया कार्यकाल

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के सामने तीनों नगर निगमों को नया नेतृत्व देने की चुनौती खड़ी हो गई है। 27, 28 और 29 अप्रैल को उत्तरी, दक्षिणी व पूर्वी दिल्ली नगर निगमों के महापौर व उप महापौर का चुनाव होना है। लेकिन पार्टी अभी तक यह तय नहीं कर पायी है कि किसे रिपीट करना (दोबारा मौका देना) है और किसके स्थान पर नया महापौर देना है? कोरोना महामारी के बीच आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के सामने अपने तीनों नेता प्रतिपक्ष का कार्यकाल बढ़ाकर (रिपीट करके) नई चुनौती खड़ी कर दी है। बताया जा रहा है कि बीजेपी की ओर से तीनों नगर निगमों के लिए अब सोमवार की सांय या फिर मंगलवार की सुबह तक सूची जारी की जाएगी।

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बीजेपी प्रदेश नेतृत्व की इसी उधेड़बुन की वजह से महापौर के चुनाव के लिए नामांकन की तारीख एक दिन आगे बढ़ानी पड़ी है। अब सोमवार के बजाय मंगलवार 20 अप्रैल को तीनों नगर निगम के महापौर और उपमहापौर पदों के लिये नामांकन पत्र दाखिल किये जायेंगे। हाल ही में उत्तरी और पूर्वी दिल्ली नगर निगम की पांच सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने प्रदेश नेतृत्व पर दबाव और बढ़ा दिया है। ऐसे में दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना पड़ रहा है।

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दिल्ली बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी के पास अब नये प्रयोग करने का समय नहीं बचा हैं कारण है कि जो भी महापौर बनेगा, उसके पास काम करने के लिए केवल 6 से 8 महीने का समय ही होगा। क्योंकि जून तक नगर निगमों की विभिन्न समितियों व उपसमितियों के चुनाव हो पायेंगे। ऐसे मे यदि किसी नये व्यक्ति को महापौर और स्थायी समिति अध्यक्ष के पद की कमान सोंपी जाती है, तो उसे तीन से चार महीने तो कार्य प्रणाली को समझने में ही लग जाएंगे। माना जा रहा है कि तीनों नगर निगमों में पहले से महापौर, स्थायी समिति अध्यक्ष और नेता सदन के पदों पर रह चुके लोगों में से ही यह जिम्मेदारियां दी जाएंगीं।

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बता दें कि अप्रैल 2022 तक दिल्ली के तीनों नगर निगमों का चुनाव होना है। वर्तमान हालातों पर गौर करें तो भारतीय जनता पार्टी के ऊपर आम आदमी पार्टी पूरी तरह से हावी नजर आ रही है। ‘आप’ नेता लगातार नगर निगम और बीजेपी पार्षदों को भ्रष्ट साबित करने में जुटे हुए हैं। ऐसे में बीजेपी को दो मोर्चों पर आगे बढ़ना है। एक ओर बीजेपी के सामने अपनी पार्टी व पार्षदों की छवि सुधारनी है और दूसरी ओर नगर निगम की कार्यप्रणाली में परिवर्तन करना होगा। लेकिन यह काम इतने आसान नहीं हैं। अतः बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह इस बार नगर निगमों को सही नेतृत्व प्रदान करे।
बीजेपी को आप की चुनौतीः
नगर निगमों में अपने तीनों विपक्ष के नेताओं को दोबारा मौका देकर आम आदमी पार्टी ने बड़ा दांव खेला है। ‘आप’ ने उत्तरी दिल्ली में विकास गोयल, दक्षिणी दिल्ली में प्रेम चौहान और पूर्वी दिल्ली में मनोज त्योगी को फिर से विपक्ष का नेता बनाया है। इसका मतलब है कि सदन के अंदर और बाहर बीजेपी को घेरने के लिए आम आदमी पार्टी के तीनों नेताओं को निगम की कार्यप्रणाली समझने के लिए समय बर्बाद नहीं करना पड़ेगा। जबकि यदि बीजेपी यदि किसी नये नेता को मेयर या स्थायी समिति का अध्यक्ष बनाती है तो उन्हें निगम का कामकाज समझने में तीन से चार महीनों का समय लग जायेगा। जबकि चुनाव की दृष्टि से किसी भी दल को एक-एक दिन की रणनीति बनाकर चलना होगा। ऐसे में बीजेपी की भी यही मजबूरी बन गई है कि किसी नये नेता को मौका देने के बजाय पिछले चार वर्षों से आजमाये जा चुके हर निगम के 4 से 6 नेताओ में से ही किसी मंझे हुए खिलाड़ी को मौका दिया जाये।
उत्तरी दिल्ली नगर निगमः
उत्तरी दिल्ली नगर निगम दिल्ली का सबसे चर्चित नगर निगम रहा है। कारण है कि यहां कर्मचारियों और अधिकारियों के वेतन और सेवा निवृत कर्मचारियों की पेंशन का मामला पिछले कुछ महीनों में बड़ा मुद्दा बना रहा है। इसके साथ ही आम आदमी पार्टी का भी ज्यादा फोकस उत्तरी दिल्ली पर ही रहा है। इसी से जुड़े मुद्दों को लेकर आम आदमी पार्टी के नेता बीजेपी को घेरते रहे हैं। लेकिन महापौर जय प्रकाश ने विपक्ष के आरोपों का सामना करते हुए नगर निगम को आर्थिक झंझावातों से बड़ी ही समझदारी के साथ निकाला है। बीजेपी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यहां पार्टी महापौर जय प्रकाश को एक बार फिर से मौका देने पर विचार कर रही है। कारण है कि यदि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के कठिनाइयों से बाहर निकलने के प्रयासों में यदि थोड़ा सी भी रूकावट आती है तो आगे चलकर यह बीजेपी के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का यह भी कहना है कि यहां वर्तमान तिकड़ी को ज्यों का त्यों रिपीट किया जा सकता है।
दक्षिणी दिल्ली नगर निगमः
पिछले दो महापौर के कार्यकाल से दक्षिणी दिल्ली नगर निगम लगातार अपनी चमक खोता जा रहा है। वर्तमान हालात तो यह हैं कि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम पर अधिकारी वर्ग पूरी तरह से हावी हो गया है। सीएम आवास पर धरने की बात हो या फिर निगम की छवि सुधारने का मामला, हर क्षेत्र में दक्षिणी दिल्ली नगर निगम पिछड़ता जा रहा है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यहां महापौर के लिए यहां भूपेंद्र गुप्ता और कमलजीत सहरावत के नामों पर विचार किया जा रहा है। पार्टी में एक गुट का यह भी मानना है कि भूपेंद्र गुप्ता, कमलजीत सहरावत, शिखा राय और नरेंद्र चावला में से किन्हीं तीन लोगों को निगम की कमान सोंपी जानी चाहिए। पार्टी से जुड़े एक धड़े का मानना है कि नरेंद्र चावला का व्यवहार अन्य पार्षदों के साथ ज्यादा अच्छा नहीं है, अतः चुनावी वर्ष में उन्हें नेता सदन के अलावा अन्य कोई जिम्मेदारी दिया जाना बीजेपी के लिए घातक भी हो सकता है। हालांकि यहां महापौर पद के लिए तुलसी जोशी, नंदिनी शर्मा और मुकेश सूर्यान भी जोरआजमाइश में जुटे हैं। वर्तमान महापौर अनामिका का कार्यकाल भी पिछली महापौर सुनीता कांगड़ा जैसा ही गुजरा है। अतः अब बीजेपी को नया महापौर और स्थायी समिति अध्यक्ष देने के लिए गंभीरता से विचार करना होगा।
पूर्वी दिल्ली नगर निगमः
पूर्वी दिल्ली नगर निगम का नाम उत्तरी व दक्षिणी दिल्ली के मुकाबले कम चर्चा में रहता है। लेकिन महापौर निर्मल जैन से जो उम्मीद पार्टी ने लगा रखी थी, उस पर वह खरे नहीं उतर पाये हैं। अब पार्टी के सामने यही चुनौती है कि इस बार निगम की कमान किसे सोंपी जाये। पार्टी में दावेदारों की कमी नहीं है लेकिन चुनावी वर्ष में कोई नया प्रयोग करना बीजेपी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। वैसे भी 2017 के बाद से पूर्वी दिल्ली नगर निगम में चार-पाचं लोग ही अब तक नेतृत्व देते आ रहे हैं। इनमें से करावल नगर से निगम पार्षद और स्थायी समिति के अध्यक्ष मास्टर सत्यपाल सिंह का नाम तेजी से उभरा है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इस बार सत्यपाल सिंह को महापौर बनाया जा सकता है। हालांकि पार्टी में नेता सदन प्रवेश शर्मा और कई दूसरे नेता दावेदारी में जुटे हैं। लेकिन जिस तरह से उपचुनाव में पार्टी तीनों सीटों पर पिछले निगम चुनाव से भी ज्यादा मतो ंके अंतर से हारी है, उसके बाद बीजेपी प्रदेश नेतृत्व के सामने नेताओं के नाम का चयन करने की चुनौती खड़ी हो गई है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी की रणनीति का सामना बीजेपी किस तरह से करती है?