-20 जुलाई को है आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी, शुरू हो रहे चातुर्मास
-भगवान विष्णु करेंगे विश्राम…मेष, मकर और कुंभ राशि वाले जरूर करें ये काम
हिंदू धर्म-संस्कृति और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु सृष्टि का संचालन करते हैं। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से भगवान विष्णु 4 माह तक क्षीर-सागर में विश्राम करते हैं। यह तिथि इस वर्ष मंगलवार 20 जुलाई 2021 को पड़ रही है। भगवान विष्णु के विश्राम के समय सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में होता है। भगवान विष्णु कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन जागते हैं। इस दौरान भगवान शिव को समर्पित पावन माह सावन भी आता है। सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इन 4 महीनों के समय को चातुर्मास भी कहा जाता है। भगवान शिव अपने भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुछ राशियों पर भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। ये राशियां हैं, मेष, मकर और कुंभ। इन राशियों के जातकों को शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए चातुर्मास में रोजाना नियमित रूप से शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए। सभी राशियों के जातक शिव चालीसा का पाठ कर सकते हैं। शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही ऊॅं नमः शिवाय का जप भी करें।
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आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन के बाद चर्तुमास शुरू हो रहा है और मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन और जनेऊ अगले चार महीनों तक वर्जित रहेंगे। चातुर्मास का समय कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी देवोत्थान एकादशी तक माना जाता है। इस वर्ष चतुर्मास 20 जुलाई से लेकर 14 नवंबर तक रहेगा। 14 नवंबर के बाद से ही मांगलिक कार्य शुरू होंगे। इसे देवशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है।
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पंचांग के अनुसार चतुर्मास के बाद फिर शादी-विवाह के लिए इस साल 19 नवंबर से 13 दिसंबर तक कुल 12 लग्न है। काशी-विश्वनाथ के पंचाग के अनुसार जुलाई महीने में केवल 12, 15 व 16 जुलाई के लग्न थे। इसके बाद सीधे नवंबर महीने में 19, 20, 21, 26, 28 और 29 को विवाह के मुहूर्त हैं। दिसंबर महीने में 1, 2, 5, 7, 12 और 13 दिसंबर 2021 को विवाह के लिए शुभ मुहूर्त हैं। मिथिला पंचांग के अनुसार नवंबर में 21, 22, 29 और दिसंबर में 1, 2, 5, 6, 8, 9, 13 दिसंबर को विवाह के लिए उपयुक्त मुहूर्त हैं।
पूजा विधिः
एकादशी का व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं को प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिए। इसके पश्चात पूजा स्थल को साफ करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर विराजमान करके भगवान का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें। भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करने के बाद धूप, दीप और पुष्प चढ़ाकर आरती उतारें और इस मंत्र द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति करेंः-
मंत्र: ‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।’
अर्थः हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
इस प्रकार भगवान विष्णु का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन या फलाहार ग्रहण करें। देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन व स्तुति करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए।
देवशयनी एकादशी का शुभ मुहूर्त
सोमवार 19 जुलाई 2021 को एकादशी की तिथि आरंभ रात्रि 9 बजकर 59 मिनट पर प्रारंभ होगी। इसके पश्चात मंगलवार 20 जुलाई 2021 को रात्रि 7 बजकर 17 मिनट पर एकादशी का समापन होगा। देवशयनी एकादशी की पूजा व व्रत मंगलवार 20 जुलाई 2021 को होगा।
देवशयनी एकादशी की कथा
धर्मराज युधिष्ठिर ने एक बार श्रीकृष्ण से कहा कि हे केशव! आषाढ़ मास की शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की क्या विधि और किस देवता का पूजन किया जाता है? इस पर श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही मैं तुमसे कहता हूं। एक समय नारद जी ने ब्रह्माजी से यही प्रश्न किया था। तब ब्रह्माजी ने उत्तर दिया कि हे नारद तुमने कलियुगी जीवों के उद्धार के लिए बहुत उत्तम प्रश्न किया है। क्योंकि एकादशी का व्रत सब व्रतों में उत्तम है। इस व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और जो मनुष्य इस व्रत को नहीं करते वे नरकगामी होते हैं।
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इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। इस एकादशी का नाम पद्मा है। अब मैं तुमसे एक पौराणिक कथा कहता हूँ। तुम मन लगाकर सुनो। सूर्यवंश में मांधाता नाम के एक चक्रवर्ती राजा हुए हैं, जो सत्यवादी और महान प्रतापी थे। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन किया करते थे। उसकी सारी प्रजा धनधान्य से भरपूर और सुखी थी। उसके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था। एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुःखी हो गई। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। एक दिन प्रजा राजा के पास जाकर कहने लगी कि हे राजन! सारी प्रजा त्राहि-त्राहि पुकार रही है। क्योंकि समस्त विश्व की सृष्टि का कारण वर्षा है।
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अभाव से अकाल पड़ गया है और अकाल से प्रजा मर रही है। इसलिए हे राजन! कोई ऐसा उपाय बताअओ जिससे प्रजा का कष्ट दूर हो। राजा मांधाता कहने लगे कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यंत दुःखी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दुःखों को समझता हूँ। ऐसा कहकर राजा कुछ सेना साथ लेकर वन की तरफ चल दिया। वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करता हुआ अंत में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचा। वहां राजा ने घोड़े से उतरकर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि हे भगवन! सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी मेरे राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा अत्यंत दुखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा को कष्ट होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा है। जब मैं धर्मानुसार राज्य संचालन करता हूं तो मेरे राज्य में अकाल कैसे पड़ गया? इसके कारण का पता मुझको अभी तक नहीं चल सका।
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अब मैं आपके पास इसी संदेह को दूर करने के लिए आया हूं। कृपा करके मेरे इस संदेह को दूर कीजिए। साथ ही प्रजा के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताइए। इतनी बात सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यह सतयुग सब युगों में उत्तम है। इसमें धर्म को चारों चरण सम्मिलित हैं अर्थात इस युग में धर्म की सबसे अधिक उन्नति है। लोग ब्रह्म की उपासना करते हैं और केवल ब्राह्मणों को ही वेद पढ़ने का अधिकार है। ब्राह्मण ही तपस्या करने का अधिकार रख सकते हैं, परंतु आपके राज्य में एक शूद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है।
इसलिए यदि आप प्रजा का भला चाहते हो तो उस शूद्र का वध कर दो। इस पर राजा कहने लगा कि महाराज मैं उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को नहीं मार सकता। आप इस दोष से छूटने का कोई दूसरा उपाय बताइए। तब ऋषि कहने लगे कि हे राजन! यदि तुम अन्य उपाय जानना चाहते हो तो सुनो। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो। व्रत के प्रभाव से तुम्हारे राज्य में वर्षा होगी और प्रजा सुख प्राप्त करेगी। क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को देने वाला है और समस्त पापों का नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करो।
मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर को वापस आया और उसने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और प्रजा को सुख पहुंचा। अतः इस मास की एकादशी का व्रत सब मनुष्यों को करना चाहिए। यह व्रत इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति को देने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है।
(यह आलेख भारतीय सनातन परंपरा एवं ज्योतिषीय सिद्धांतों पर आधारित है और जनरूचि को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसके लिए कोई विशेष दावा नहीं है। अपने समाचार, लेख एवं विज्ञापन छपवाने हेतु संपर्क करेंः- ईमेलः newsa2z786@gmail.com मोबाइलः 7982558960)