कृषि बिल के समर्थन में किसान सभा का आयोजन

-सांसद रमेश बिधूड़ी औश्र जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत हुए शामिल

एसएस ब्यूरो/ नई दिल्ली
केंद्र की मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि बिलों के समर्थन में किसान सभा का आयोजन किया गया। बुधवार को दक्षिणी दिल्ली सांसद रमेश बिधूड़ी के नेतृत्व में जिला महरौली के कापसहेड़ा में कृषि बिल के समर्थन में 10 गॉंव की दूसरी किसान सभा का आयोजन किया गया। जिसमें जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत मुख्य वक्ता के रूप में व जिलाध्यक्ष महरौली जगमोहन महलावत, निगम पार्षद इन्द्रजीत सहरावत, रविन्द्र गोदारा, महेश यादव उपस्थित थे। सभा के दौरान कोविड-19 से संबंधित नियमों का पालन किया गया।

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किसानों को सम्बोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि किसानों के इस सम्मेलन में ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मैं अपने घर में अपने लोगों के बीच बात कर रहा हूॅं। उन्होंने कहा कि खुद किसान होने के नाते व कृषि क्षेत्र में काम करने के नाते और मोदी जी के पहले कार्यकाल में कृषि मंत्री होने के नाते कृषि क्षेत्र में काम करने का अवसर मिला। कृषि क्षेत्र को और बारीकी से समझने, उसकी नीतियों, योजनाओं के बारे में चर्चा करने का अवसर आप सभी के आशीर्वाद से मिला है। हम सभी ने कभी ना कभी अपने बुजुर्गों से सुना है कि भारत सोने की चिड़िया है, इस देश में दूध-दही की नदियॉं बहती हैं।

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हमने गुलाम भारत में अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण दुर्भाग्य से हमारा देश खाद्यान की कमी वाला देश बन गया, देश आजाद होने के बाद अंग्रेजी हुकूमत से आजादी तो मिल गई परन्तु जो लोग सत्ता में थे उनके दिमाग में ब्रिटिश हुकूमत उसी प्रकार बनी रही, उन्होंने भारत की कृषि को, भारत की अर्थव्यवस्था को और भारत के विकास को कभी भारत के दृष्टिकोण से नहीं देखा, उन्होंने अंग्रेजो की जो व्यवस्था थी उसी अनुसार देश को चलाने का प्रयास किया, और उसका परिणाम क्या रहा भारत खाद्यान की कमी वाला देश बन गया।

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शेखावत ने आगे कहा कि मैं धन्यवाद करना चाहता हूॅं देश के अन्नदाता का जिनके खून पसीने से मेहनत से और वैज्ञानिकों का जिनके कृषि क्षेत्र में लगन व परिश्रम से खाद्यान की कमी वाला देश अधिक उत्पादन वाला देश बना। अपितु आज हमारा देश दुनिया के 10 सबसे बड़े देशों में कृषि उत्पाद को निर्यात करने वाला देश बना है। भारत का 4 लाख करोड़ रू0 का कृषि व्यापार है, ढाई लाख करोड़ रू0 का कुल आयात है और 4 लाख करोड़ रू0 का कुल निर्यात है।

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उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतनी मेहनत करने के बाद भी देश का किसान क्यों आत्महत्या करने को मजबूर था, क्यों किसान के घर में रोशनी नही थी, क्योंकि अंग्रेजी मानसिकता देश पर शासन करने वालों के दिमाग में रही थी, जिससे देश का किसान उन्नति से वंचित रहा। आज जब उनके उत्थान का रास्ता खुला है तो विरोधी दल उसे बंद करने का प्रयास कर रहे हैं।

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दक्षिणी दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी ने कहा कि कृषि बिल जो किसानों को समृद्ध और सशक्त बनाने वाला बिल है, जिसमें देश के किसानों की आय दोगुनी हो, किसान को फसल की कीमत डबल मिले ऐसी व्यवस्था व प्रावधान हैं। परन्तु विपक्ष द्वारा इस बिल के विषय में फैलाया जा रहा झूठ जो कि तथ्यों से परे है। बिधूड़ी ने बताया कि अभी तक देश में किसानों के कल्याण, किसानों के उत्थान व उन्नति की लोग बाते करते थे, किसानों की फसल की कीमत उन्हें पूरी मिल जाए इस संदर्भ में पूर्व में रही सरकारों ने कभी परवाह नहीं की। राजनीतिक दल दशकों तक देश पर शासन करते रहे और गरीब किसान अंधकार व गरीबी में रहा। पहली बार हमारे देश के पीएम नरेन्द्र मोदी जी किसानों के उत्थान के लिए बिल लाये हैं, तो यह बदलाव उन्हें अच्छा नहीं लगा, वह इसका विरोध कर रहे हैं बिल के खिलाफ झूठ फैला कर लोगों को भ्रमित करने का काम कर रहे हैं।
बिधूड़ी ने किसानों को बिल के फायदे बताते हुए कहा कि 70 साल बाद देश के अन्नदाताओं को बिचौलियों के चुंगल से मुक्ति मिलेगी, वह अपनी उपज को इच्छानुसार मूल्यों पर देश के किसी भी क्षेत्र में जाकर बेच सकते हैं। इस बिल से किसान खरीददार से सीधे संपर्क कर सकेंगे और बीच में बिचौलियों को मिलने वाले लाभ के बजाय किसान को उनके उत्पाद की पूरी कीमत मिलेगी। अगर इस दौरान किसी भी विवाद की स्थिति बनती है तो उसका निपटान भी 30 दिनों में स्थानीय स्तर पर हो सकेगा और खरीददार द्वारा उपयुक्त कृषि मशीनरी तथा उपकरण की व्यवस्था की जाएगी।
देश में 10 हजार कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) निर्मित किए जा रहे हैं, कांट्रैक्ट सिर्फ उपज पर लागू होगा किसान की जमीन पर नहीं। किसानों को अपने उत्पाद के लिए कोई उपकर नहीं देना होगा और उन्हें ढुलाई का खर्च भी वहन नहीं करना होगा। श्री बिधूड़ी ने एमएसपी व एपीएमसी पर लोगों में फैलाए जा रहे भ्रम कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद बंद हो जायेगी, के विषय में बताया कि एमएसपी पर पहले की तरह खरीद जारी थी और आगे भी जारी रहेगी। पहले किसान मजबूर थे मंडियों में अपनी फसल को बेचने के लिए, उनसे एम.एस.पी. से डाउन रेट पर मंडियों में कीमत ली जाती थी क्योंकि उसकी सरकारी खरीद नहीं हो पाती थी राज्य सरकारों के द्वारा।