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नैतिकता और ‘‘पार्टी विद डिफरेस’’ वाली बीजेपी में जोरों पर ‘कैमोफ्लॉज पॉलिटिक्स’!

-पार्टी नेतृत्व से सवालः निकाले गये नेताओं को क्यों मिल रहा प्रदेश नेतृत्व के यहां सम्मान
-महरौली मंडल अध्यक्ष ने लगवाये बीजेपी से निकाले गये आजाद सिंह के होर्डिंग-पोस्टर

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
नैतिकता और ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी में ‘कैमोफ्लॉज पॉलिटिक्स’ यानी कि ‘छद्म राजनीति’ जोरों पर है। खास तौर पर दिल्ली बीजेपी में ऐसे लोगो को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है जो पार्टी के दूसरे नेताओं की अनदेखी या खिलाफत कर रहे हों अथवा पार्टी की छवि को धूमिल करने में शामिल रहे हों। हाल ही में महिला मोर्चा में आपसी कलह का मामला सामने आया था, अब पार्टी के महरौली जिला से खबर है कि यहां बीजेपी से निकाले गये नेताओं को बीजेपी के ही कुछ पदाधिकारियों के द्वारा पार्टी पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह सब प्रदेश नेतृत्व की नाक के नीचे चल रहा है।

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ताजा मामला महरौली जिला से जुड़ा है। जिले के महरौली मंडल अध्यक्ष राहुल ढाका पार्टी लाइन से बाहर जाकर काम कर रहे हैं, जिसकी वजह से बीजेपी के दूसरे पदाधिकारियों, नेताओं और कार्यकर्ताओं में पार्टी व पार्टी नेतृत्व के प्रति नाराजगी और भ्रम की स्थिति बनती जा रही है। राहुल ढाका ने महरौली जिला में पार्टी से अनुशासनहीनता के आरोप में निकाले जा चुके पूर्व जिला अध्यक्ष आजाद सिंह के होर्डिंग और पोस्टर लगावा दिये हैं। इसके बाद जिला और मंडल के पार्टी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इन होर्डिंग-पोस्टर्स में क्षेत्रीय सांसद तक का फोटो नहीं लगवाया गया है। आम तौर पर प्रोटोकॉल के तहत स्थानीय स्तर पर कोई भी होर्डिंग-पोस्टर छपवाते समय पार्टी के स्थानीय विधायक और सांसद का फोटो लगवाया जाता है।

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बता दें कि पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के कार्यकाल के दौरान प्रदेश कार्यालय में ‘थप्पड़ कांड’ के बाद आजाद सिंह और उनकी पत्नी सरिता चौधरी को बीजेपी से अनिश्चितकाल के लिए निकाल दिया गया था। इन दोनों में से किसी की भी पार्टी में विधिवत वापसी नहीं हुई है। इसके बावजूद ये दोनों नेता प्रदेश अध्यक्ष के घर, प्रदेश कार्यालय और संगठन महामंत्री के आवास पर आये दिन दिखायी दे जाते हैं। दिल्ली बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि आम तौर पर प्रदेश अध्यक्ष पार्टी कार्यकर्ताओं को अलग से कोई समय नहीं देते हैं, लेकिन पार्टी से निकाले जा चुके लोगों को समय मिल जाता है।

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गौरतलब है कि दिल्ली बीजेपी ने हाल ही में अपने तीन निगम पार्षदों को आर्थिक भ्रष्टाचार के आरोपों में पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित किया है। इससे पहले उत्तरी निगम के दो पार्षदों को बीजेपी से अनुशासनहीनता के आरोप में निकाला गया था। इनमें से एक पार्षद को 2017 के चुनाव के समय ही निकाल दिया गया था, लेकिन वह कब पार्टी में शामिल हुई, यह बात खुद प्रदेश अध्यक्ष को ही पता नहीं है। ऐसे में बीजेपी प्रदेश नेतृत्व के निर्णयों के ऊपर ही सवालिया निशान लग गये हैं।
के एक और पदाधिकारी ने कहा कि बीजेपी प्रदेश नेतृत्व को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आजाद सिंह या फिर ऐसे ही दूसरे लोग, जो कि पार्टी से निकाले जा चुके हैं, उनके होर्डिंग-पोस्टर पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह के साथ कैसे लग जाते हैं? किसी को भी पार्टी से निकाले जाने के आदेशों के जरिये बीजेपी के सामान्य कार्यकर्ताओं के साथ छद्म पॉलिटिक्स क्यों की जा रही है।