‘रक्त चरित्र’ की हैटट्रिक… दीदी का खेला पड़ा भारी… बीजेपी बड़े अंतर से हारी!

-केंद्र सरकार की पूरी ताकत झोंकने के बावजूद नहीं हो सका ‘सोनार बांग्ला’
-दिल्ली की तरह पश्चिम बंगाल में नहीं चला पीएम ‘मोदी का जादू’
-स्टार वॉर में नंदीग्राम में भी फर्राटे से दौडी दीदी की स्कूटी
-सियासी तोड़फोड़ व थोक में दलबदल नहीं आया बीजेपी के काम

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
पश्चिम बंगाल (West Bengal) के सियासी संग्राम में दीदी ममता बनर्जी (Mamta Benarji) का ‘खेला’ भारतीय जनता पार्टी (BJP) पर भारी पड़ा है। राज्य में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में भारतीय जनता पार्टी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। बंगाल में सरकार बनाने के बीजेपी के सपनों पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने पानी फेर दिया है। यहां तक कि बीजेपी केवल असम (Asam) में ही वापसी कर पायी है। बाकी चारों राज्यों में बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी है। दूसरों में तोड़-फोड़, दलबल और खरीद-फरोख्त भी बीजेपी के काम नहीं आयी और दीदी का ‘रक्त चरित्र’ सरकार बनाने की ‘हैटट्रिक’ (Hat Trick) लगाने में कामयाब रहा। विधानसभा चुनाव में ‘200 प्लस’ का नारा देने वाली बीजेपी ‘अंडर हंड्रेड’ पर सिमट कर रह गई है।

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दरअसल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से लेकर केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी एवं सहयोगी दल राज्य की ममता सरकार को ‘रक्त चरित्र’ की राजनीति की देन साबित करने में जुटे हुए थे। किसी हद तक यह बात सच भी है कि ममता बनर्जी की सरकार में एक खास वर्ग और एक खास पार्टी के खिलाफ हिंसा होना आम बात है। लेकिन बीजेपी इस बात को शायद सही ढंग से लोगों को समझाने में नाकाम रही। या फिर इस बात को इस तरह से भी कहा जा सकता है कि पार्टी की ‘दोहरे चरित्र’ की रणनीति पश्चिम बंगाल के मतदाताओं को नहीं भाई। यहां तक बीजेपी का ‘सोनार बांग्ला’ का नारा पूरी तरह से ध्वस्त हो गया।

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बता दें कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को घेरने के लिए बीजेपी ने जबरदस्त रणनीति बनाई थी। राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले एक-एक करके बीजेपी ने दीदी के करीब डेढ़ दर्जन विश्वस्त सिपहसालारों को तोड़ लिया था। मुकुल रॉय, सुवेंदु अधिकारी, सुनील कुमार मंडल, शील भद्र दत्ता, बनश्री दत्ता, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दिपाली बिस्वास, सैकत पंजा, सुक्र मुंडा, तापसी मंडल, अशोक डिंडा, बिस्वजीज कुंड्डू, दसरथ टिर्के आदि सहित कई दूसरे नेताओं को विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल कराया गया था। लेकिन बीजेपी द्वारा करायी गई सांसदों-विधायकों की यह दलबदल और खरीद-फरोख्त भी पार्टी के काम नहीं आयी। पीएम मोदी ने सीएम ममता बनर्जी के स्कूटी चलाने का मजाक उड़ाया था, लेकिन चुनावी नतीजों में दीदी की स्कूटी फर्राटा भरती नजर आयी।

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हालांकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को हराने के लिए मैदान में उतारा गया बीजेपी का ट्रंप कार्ड सुवेंदु बनर्जी (Suvendu Mukharji) नंदीग्राम (Nandigram) के संग्राम में ममता बनर्जी के सामने जीत गये। बीजेपी नेतृत्व ने पश्चिम बंगाल में लंबे समय से पार्टी के लिये संघर्ष करते आ रहे प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष (Dilip Ghosh) को सुवेंंदु अधिकारी से पीछे कर दिया था। इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) का जादू पश्चिम बंगाल की जनता पर नहीं चल सका। इस चुनाव में बीजेपी ने अपने सभी केंद्रीय मंत्रियों, राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के साथ सांसदों व विधायकों को चुनाव प्रचार पर लगाया था। इसके साथ ही दिल्ली सहित दूसरे राज्यों के प्रदेश संगठनों के नेता भी लाखों की संख्या में पूरे चुनाव में पश्चिम बंगाल में डटे रहे। लेकिन कोई जनता की नब्ज नहीं भांप सका।
काम नहीं आया मीडिया का समर्थन
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान और इससे पहले से ही प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक हद तक बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी। कुछ खबरिया चैनल तो हाथ धोकर ममता बनर्जी के पीछे पड़ गए थे। लेकिन पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि मीडिया केवल प्रचार का माध्यम तो बन सकता है, लेकिन जनता का मन नहीं बदल सकता। किसी भी व्यक्ति या राजनीतिक दल को चुनाव नहीं जिता सकता। बार-बार उदाहरण दिया जाता है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सत्ता में दिलाने वाला केवल मीडिया है। लेकिन यहां यह भी सच है कि मीडिया ने केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को पहचान दी है, चुनाव नहीं जिताया। चुनाव वह अपने दम पर जीतते रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में धराशायी हुए एग्जिट पोल
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से एग्जिट पोल्स धराशायी हुए हैं। एक भी एजेंसी नतीजों के आस पास तक नहीं पहुंच सकी। बता दें कि कई चुनावी सर्वे एजेंसियों के साथ बड़े-बड़े चैनल जुड़े हुए हैं। इन चैनलों ने बिना कोरोना की चिंता किये अपने लोगों को पूरे चुनाव के दौरान झोंके रखा। इन्हीं लोगों की रिपोर्टस के आधार पर एजेंसियों ने अपने एग्जिट पोल जारी किये। लेकिन फिर भी यह एग्जिट पोल्स धराशायी हो गए। क्योंकि कहीं न कहीं इन एग्जिट पोल्स को तैयार करने में भी पूर्वाग्रह शामिल रहा।
बीजेपी के सामने बड़ी चुनौती तो 2022 में खड़ी है
पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, केरल और पुड्डूचेरी जैसे पांच राज्यों में से बीजेपी केवल असम में वापसी कर पायी है। पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने अपनी अब तक की पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके बावजूद 90 सीट से ऊपर तक नहीं पहुंच पायी है। लेकिन बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती तो 2022 में होगी। क्योंकि अगले वर्ष फिर से पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और इनमें से ज्यादातर राज्य उत्तर भारत के हैं। अगले साल उत्तर प्रदेश के साथ उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। फिलहाल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में बीजेपी की सरकार है। जबकि पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। 2022 में बीजेपी के सामने चार राज्यों में अपनी सरकार की वापसी की बड़ी चुनौती होगी। रविवार 2 मई को आये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए खतरे की घंटी भी साबित हो सकते हैं।
दिल्ली के तीनों नगर निगमों की चुनौती
अगले साल केवल 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव ही बीजेपी के लिए चुनौती पेश नहीं करेंगे, बल्कि राजधानी दिल्ली के तीनों नगर निगमों के चुनाव भी वर्ष 2022 में ही होने हैं। अप्रैल-मई के बीच तीनों नगर निगमों का चुनाव होना है। लेकिन यहां आम आदमी पार्टी पहले से ही जबरदस्त बढ़त बनाये हुए है। ऐसे में बीजेपी के सामने नगर निगमों के चुनाव में 2017 का प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती रहेगी। बता दें कि भारतीय जनता पार्टी 2007 से लगातार नगर निगमों की सत्ता में बनी हुई है। 2007, 2012 और 2017 के तीना चुनाव बीजेपी जीत चुकी है। लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या 2022 में भी बीजेपी की सत्ता तीनों नगर निगमों में बरकरार रहेगी?