हर्षवर्धन को भारी पड़ी दिल्ली वालों से बेरूखी!… रिजल्ट देने में नाकाम, चली गई कुर्सी

-अच्छे प्रदर्शन के बावजूद प्रसाद और जावडेकर की छुट्टी

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली (8 जुलाई 2021)
पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन को दिल्ली वालों के साथ बेरूखी भारी पड़ गई। मोदी सरकार के मंत्रिमंडल से उनकी छुट्टी हो गई है। इस बड़े फेरबदल का शिकार केवल हर्षवर्धरन ही नहीं बल्कि रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक और प्रकाश जावडेकर समेत 12 केंद्रीय मंत्री हुए हैं। बताया जा रहा है कि अलग अलग लोगों के साथ अलग अलग कारण जुड़े हैं, लेकिन डॉक्टर हर्षवर्धन और रमेश पोखरियाल निशंक को मंत्रिमंडल से हटाये जाने के पीछे उनका खराब प्रदर्शन रहा है।

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बताया जा रहा है कि रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर को संगठन में विशेष कार्यभार सोंपने के लिए सरकार के कामकाज से मुक्त किया गया है। दूसरी ओर हर्षवर्धन की स्थिति मोदी सरकार-एक से ही डांवाडोल रही है। पेशे से डॉक्टर और पोलियो उन्मूलन अभियान की रूपरेखा तैयार करने में उनके योगदान को देखते हुए 2014 में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन दो साल में ही उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से हटाकर अर्थ साइंस मंत्रालय में भेज दिया गया था। उनके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गई थी।

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साल 2019 में उन्हें फिर से स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंपी गई। कोरोना जैसे वैश्विक संकट के दौर में इन दोनों मंत्रालय की अहम भूमिका थी। लेकिन हर्षवर्धन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका अदा करने में विफल साबित हुए। उनकी जगह स्वास्थ्य मंत्रालय के बड़े अधिकारियों के साथ नीति आयोग के सदस्य डाक्टर वीके पाल और भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डाक्टर विजय राघवन ने आगे बढ़कर कमान संभाली। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गई अपने प्रदर्शन की रिपोर्ट में हर्षवर्धन के पास बताने के लिए कुछ खास नहीं था। इसीलिए इस बार उन्हें मंत्रिमंडल से पूरी तरह से बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

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दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता ने बताया कि केंद्र में मंत्री बनने के बाद से डॉक्टर हर्षवर्धन दिल्ली वालों से कट गए थे। एक ओर वह मंत्रालय में रहकर कुछ विशेष करके नहीं दिखा पा रहे थे, दूसरी ओर स्थानीय कार्यकर्ताओं के साथ भी पूरी बेरूखी के साथ पेश आ रहे थे। गिने-चुने लोगों को छोड़कर हर्षवर्धन ने मीडियाकर्मियों के साथ भी बात करना बंद कर दिया था। पार्टी के ज्यादातर लोगों को वह मिलने का समय ही नहीं दे रहे थे और अपना काम लेकर जाने वाले कार्यकर्ताओं को भी वह संतुष्ट नहीं कर पा रहे थे। इसकी शिकायतें भी प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व दूसरे पदाधिकारियों तक लगातार जा रही थीं। इसी के चलते प्रधानमंत्री ने उन्हें मंत्रीमंडल से बाहर करने का निर्णय लिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिक्षा मंत्री के रूप में कई प्रयोगों के बाद रमेश पोखरियाल निशंक को लाये थे। उनसे उम्मीद की गई कि वह देश की शिक्षा प्रणाली भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप लागू करने में सफल होंगे। कई पुस्तकों के लेखक और भारतीय संस्कृति के जानकार के रूप में उनसे ऐसी अपेक्षा अनुचित भी नहीं थी। लेकिन नई शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने के अलावा उनके पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं थी। कुछ दिन पहले उन्हें कोरोना हो गया था, जिसके चलते वह करीब एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। उस दौरान शिक्षा के क्षेत्र में हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए कि सीबीएसई पर फैसला लेने के लिए पीएम मोदी को खुद आगे आना पडा। नई शिक्षा नीति पीएम मोदी के दिल के काफी करीब है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय उसका श्रेय सरकार को नहीं दिला पाया, जिसका नतीजा अब निशंक को अपनी कुर्सी गंवाकर चुकाना पड़ा है।
शिक्षा के क्षेत्र में किसी नये प्रयोग के जरिये उसे नई दिशा देने की जगह निशंक उससे निपटने के लिए संघर्ष करते दिखे। शिक्षा मंत्रालय की सभी संस्थाओं पर उनकी पकड़ इतनी कमजोर दिखी कि उन विभागों द्वारा वित्त पोषित पत्रिकाओं में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जहर उगला जाता रहा और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। मामला जानकारी में आने के बाद भी वे तत्काल कार्रवाई करने में असफल रहे। शिक्षा मंत्रालय के हालात को लेकर प्रधानमंत्री की नाराजगी को इस बात से समझा जा सकता है कि वहां निशंक के साथ-साथ उनके राज्यमंत्री संजय धोत्रे को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
इसी तरह रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में सदानंद गौड़ा कोरोना काल में जरूरी दवाओं और उनके लिए जरूरी बल्क ड्रग की सप्लाई सुनिश्चित करने में विफल रहे। उनकी जिम्मेदारी सचिवों की उच्च स्तरीय समिति को निभानी पड़ी। यही स्थिति श्रम मंत्रालय में संतोष गंगवार की भी रही। कोरोना काल में श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा तो की गई, लेकिन वह पोर्टल अभी तक बनकर तैयार नहीं हो पाया। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी सरकार को फटकार खानी पड़ी।
एक चिट्ठी ने छीनी गंगवार की कुर्सी
उत्तर प्रदेश की बरेली लोकसभा सीट से सांसद संतोष गंगवार को मंत्रीपद से हटा दिया गया है। वह मोदी सरकार में स्वतंत्र प्रभार के श्रम एवं रोजगार मंत्री थे। बता दें कि कोरोना काल में संतोष गंगवार ने एक चिट्ठी लिखा थी। उनकी यह चिट्ठी खूब सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी। इस चिट्ठी में उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की थी। जबकि उनका खुद का मंत्रालय कोरोनाकाल में बेहद कमजोर साबित हुआ। बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि संतोष गंगवार को उसी चिट्ठी की सजा दी गई है।
इसके अलावा 2019 में जीत के बाद अपनी सादगी के लिए चर्चा में आने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रताप चंद्र सारंगी को राज्यमंत्री बनाकर उनपर भरोसा जताया था। लेकिन बीते दो सालों में सरकार के लिए उनका योगदान शून्य रहा। यही हाल राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया और देवाश्री चौधरी का भी रहा। यही कारण रहे कि इन सभी को पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया।