आधा सीजन पार… डॉक्टर्स में गुटबाजी… मलेरिया से दो मौत… फिर भी बचाव के लिए दवाईयां नहीं खरीद सका उत्तरी निगम

-बीजेपी शासित नगर निगमों में नहीं हो रहे जनता से जुड़े काम
-जब से प्रमोद वर्मा ने संभाला एडीशनल का काम, ठप हुआ निगम का तामझाम
-ईस्ट व साउथ निगम से उधार दवाईयां लेकर काम चला रहा नॉर्थ निगम

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
भारतीय जनता पार्टी के शासन वाले नगर निगमों के हालात बद से और ज्यादा बदतर होते जा रहे हैं। सीजन के तीन महीने बीतने जा रहे हैं, लेकिन निगम एंटी लार्वा और एंटी मलेरिया से संबंधित 1 रूपये की भी टेमीफॉस, डी-लार्वा या वेक्टीसाइट दवाईयों की खरीदारी नहीं कर सका है। ताजा मामला उत्तरी दिल्ली नगर निगम से जुड़ा है। बताया जा रहा है कि जब से डॉक्टर प्रमोद कुमार वर्मा ने एडीशनल म्यूनिसिपल हेल्थ ऑफिसर (एडी.एमएचओ) का चार्ज संभाला है तभी से निगम का पब्लिक हेल्थ और मलेरिया से जुड़े सारे काम ठप हो गए हैं।

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अभी तक दवाईयां खरीदने के लिए परचेजिंग कमेटी तक नहीं बन पाई है। इसके चलते डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और मच्छर एवं जलजनित बीमारियों से बचाव के काम में नगर निगम पिछड़ गया है। बताया यह भी जा रही है कि प्रमोद वर्मा को दिल्ली बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की सिफारिश पर यह जिम्मेदारी दी गई है। आश्चर्य की बात है कि डॉक्टरों के दो धड़ों में बंटने और आपसी लड़ाई के बीच मलेरिया की वजह से उत्तरी दिल्ली के सिविल लाइंस जोन में दो लोगों की मौत भी हो चुकी है। इसके बावजूद अब भी पूर्वी और दक्षिणी निगम से उधार दवाईयां लेकर काम चलाया जा रहा है।

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बता दें कि नगर निगम की ओर से हर साल मई महीने से ही बरसात के सीजन में फैलने वाली बीमारियों से बचाव के काम शुरू कर दिये जाते हैं। टेमीफॉस ग्रेनुअल को कूलरों में डाला जाता है ताकि मच्छरों का लार्वा पैदा नहीं हो सके। इसके अलावा डीलार्वा और वेक्टीसाइट दवाईयों का छिड़काव नालियों में किया जाता है। लेकिन नगर निगम इस साल इनमें से एक भी दवाई नहीं खरीद पाया है। यही कारण है कि ना तो घर-घर जाकर कूलरों में दवाई डालने का काम हो पा रहा है और नाही नालियों में दवाईयां छिड़की जा रही हैं।
एक माह, एक वार्ड और 500 पुड़िया
नगर निगम के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम में हर वार्ड को इस महीने केवल दो किलो टेमीफॉस दी गई है। एक वार्ड के लिए इसके 5-5 ग्राम के 400 से 500 पाउच दिये गये हैं। हर वार्ड में औसतन 14 से 15 डीबीसी कर्मचारियों को इस काम पर लगाया जाता है। ऐसे में यह दवाई एक दिन में ही खत्म हो गई और एक महीने में एक बार भी सभी घरों तक नहीं पहुंच पायी है। जबकि इन दवाईयों का छिड़काव कम से कम हर सप्ताह किये जाने की व्यवस्था की जाती रही है।
दो गुटों में बंटे डॉक्टर
सूत्रों का कहना है कि बरसात के सीजन में निगम की यह हालत बीजेपी नेतृत्व की वजह से हुई है। डॉ प्रमोद वर्मा को जब से नई जिम्मेदारी दी गई है, तभी से उनके हिस्से आने वाली हर व्यवस्था चरमराती जा रही है। निगम में डॉक्टरों के अब दो गुट हो गये हैं। इनमें से एक गुट में डॉ प्रमोद वर्मा, डॉ राजेश रावत, डॉ एसपी सिंह और डॉ संजय सिन्हा व अन्य हैं। दूसरा गुट एमएचओ डॉ अशोक रावत का है, जिसमें डॉ राजेश कुमार व निगम के कुछ अन्य डॉक्टर शामिल हैं। आश्चर्य की बात है कि नगर निगम का हिस्सा होते हुए भी बीजपी प्रदेश नेतृत्व निगम की हालत को खराब होते हुए देख रहा है।