-कटरा में माता वैष्णो देवी के दर्शन शुरू
-राज्य से बाहर के 100 लोग ही कर सकेंगे दर्शन
-पहले से कराना होगा ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन
करीब 6 महीने से बंद माता वैष्णो देवी भवन के दरवाजे 16 अगस्त रविवार से भक्तों के लिए खोल दिये गए है। रविवार की सुबह से श्रद्धालुओं की यात्रा शुरू हो गई। कोरोना के चलते यहां विशेष इंतजाम किये गए हैं। शुरुआती दिनों में केवल 2 हजार लोग ही रोजाना दर्शन कर पाएंगे। हालांकि कोरोना से पहले यहां एक दिन में 50 से 60 हजार लोग रोजाना दर्शन करते थे।
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श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के सीईओ रमेश कुमार ने बताया कि रविवार (16 अगस्त) से यात्रा शुरू हो गई है। माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा। सभी भक्तों के लिए फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करना अनिवार्य होगा। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजेशन का ध्यान रखना होगा। पहले सप्ताह में रोजाना केवल दो हजार भक्तों को ही माता वैष्णो देवी के दर्शन करने की अनुमति होगी। इनमें जम्मू-कश्मीर राज्य के 1900 और अन्य दूसरे राज्यों से केवल 100 श्रद्धालुओं को ही दर्शन की अनुमति दी जाएगी।
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उन्होंने बताया कि सभी यात्रियों की थर्मल स्कैनिंग की जाएगी। 10 साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को दर्शन करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। जिन लोगों में कोविड-19 से जुड़े कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं, उन्हें दर्शन करने से रोक दिया जाएगा। कटरा से बाणगंगा, अर्द्ध-कुंवारी और सांझीछत के रास्तों से भवन पहुंचा जा सकेगा। इसके बाद भवन से आने के लिए हिमकोटि और ताराकोट मार्ग से लौटना होगा। अन्य राज्यों के दर्शनार्थियों की कोरोना वायरस की निगेटिव रिपोर्ट हेलीपैड और दर्शनी ड्योढ़ी पर चेक की जाएगी।
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बता दें कि वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित है। मंदिर भूतल से करीब 5200 फीट ऊंचाई पर स्थित है। रियासी जिले के अंतर्गत आने वाला माता वैष्णो देवी का मंदिर जम्मू शहर से 61 किमी और कटरा से 13 किमी की ऊंचाई पर स्थित है। वैष्णो देवी की तीन पिंडियों में देवी काली, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी के रूप में गुफा में विराजित हैं।
जानें मंदिर का प्राचीन महत्व
कटरा क्षेत्र में हंसाली गांव है। इस गांव में वैष्णोंदेवी के परम भक्त श्रीधर रहा करते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। नवरात्रि में एक दिन उन्होंने पूजा के लिए कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। यहां वैष्णोदेवी कन्या वेश में उपस्थित हुई थीं। पूजा के बाद वैष्णो देवी ने श्रीधर से कहा कि गांव के लोगों को अपने घर भंडारे के लिए निमंत्रण दे आओ। श्रीधर ने उस कन्या की बात मानकर गांव के लोगों को भंडारे में बुला लिया।
उसी समय गुरु गोरखनाथ के शिष्य भैरवनाथ को भी शिष्यों सहित भोजन का निमंत्रण दिया गया। गांव के लोग श्रीधर के घर भंडारे के लिए पहुंच गए। तब कन्या रूप में वैष्णो देवी ने भोजन परोसा। कन्या से भैरवनाथ ने खीर-पूरी की जगह मांस और मदिरा मांगी। कन्या ने मना कर दिया। लेकिन, भैरवनाथ नहीं माना। भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां रूप बदलकर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ चली।
भैरवनाथ से छिपकर इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ महीने तक तपस्या की। यह गुफा आज भी आद्यकुमारी, आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है। 9 माह बाद कन्या ने गुफा के बाहर देवी का रूप धारण किया। लेकिन भैरवनाथ माता का पीछा करते रहे। माता ने भैरवनाथ को वापस जाने के लिए कहा। लेकिन, वो नहीं माना।
तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर गुफा से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। आज उस स्थान को भैरों नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा यानी भवन के नाम से जाना जाता है।
700 साल पहले हुई थी पवित्र गुफा की खोज
श्री माता वैष्णो देवी मंदिर की खोज के संबंध कई मान्यताएं हैं। माता वैष्णोदेवी श्राइन बोर्ड की अधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक लगभग 700 साल पहले मंदिर की खोज पं. श्रीधर ने की थी। पं. श्रीधर के यहां भण्डारे में माता ने कृपा की थी। देवी कन्या के रूप मे आई थीं और भैरवनाथ से बचने के लिए भंडारे को बीच में ही छोड़कर चली गई थीं। तब श्रीधर दुखी रहने लगा और उसने भोजन-जल तक छोड़ दिया। उस समय देवी श्रीधर के सपने में प्रकट हुई और गुफा तक आने का रास्ता बताया। देवी के द्वारा बताए गए रास्ते से श्रीधर वैष्णोदेवी की गुफा तक पहुंच गए थे। दिन में दो बार देवी मां की आरती होती है। पहली आरती सूर्योदय से थोड़ी देर पहले होती है। दूसरी आरती शाम को सूर्यास्त के एकदम बाद की जाती है।
1977 में हुआ नये रास्ते का निर्माण
माता वैष्णो देवी एक गुफा में विराजमान हैं। जितना महत्व वैष्णो देवी भवन का है, उतना ही महत्व यहां की गुफा का भी है। देवी के दर्शन के लिए अभी जिस रास्ते का इस्तेमाल किया जाता है, वह प्राकृतिक रास्ता नहीं है। नए रास्ते का निर्माण 1977 में किया गया था। जब मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या कम होती है, तब प्राचीन गुफा का द्वार खोला जाता है और भक्त पुराने रास्ते से माता के दरबार तक पहुंच सकते हैं। प्राचीन गुफा में पवित्र गंगा जल बहता रहता है। वैष्णो देवी मंदिर पहुंचने के लिए आदि कुंवारी या आद्यकुंवारी होकर जाना पड़ता है। यहीं एक और गुफा भी है, जिसे गर्भ-जून कहते हैं।