-केरल और असम में थी कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद
-केरल में हुईं राहुल की सबसे ज्यादा रैलियां
रविवार 2 मई को आये पांच राज्यों के चुनावी नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि पांचों राज्यों की जनता ने कांग्रेस के भावी नेतृत्व को पूरी तरह से नकार दिया है। कांग्रेस को असम और केरल से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी, लेकिन वहां भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का जादू पूरी तरह से फेल साबित हुआ। कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका केरल से मिला है, क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व को इसी राज्य से सबसे ज्यादा उम्मीद थी। माना जा रहा है कि अब पूर्वोत्तर से लेकर दक्षिण तक गांधी परिवार का तिलस्म टूट चुका है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भावी दावेदार राहुल गांधी भले ही पश्चिम बंगाल में बीजेपी के सत्ता से दूर रह जाने को लेकर खुश नजर आ रहे हों, लेकिन कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा बड़ा झटका लगा है। यही कारण है कि अब कांग्रेस के अंदर से भी आत्मचिंतन की आवाजें उठने लगी हैं।
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केरल ने कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका दिया है। लोकसभा चुनाव में पार्टी का बेहतर प्रदर्शन और राहुल गांधी का वायनाड से प्रतिनिधित्व भी राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी नहीं करा पाया। राहुल गांधी ने केरल में सबसे ज्यादा रैलियां, रोड शो और विभिन्न वर्गों के साथ संवाद किया था, लेकिन सब बेनतीजा रहा और वामपंथी दल ने इतिहास रचते हुए राज्य की सत्ता में दोबारा वापसी की। बता दें कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी नेतृत्व के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए वरिष्ठ नेता, पूर्व सांसद एवं दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रभारी पीसी चाको ने कांग्रेस छोड़ कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ज्वॉइन कर ली थी।
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पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान बंगाल को लेकर पार्टी को राज्य इकाई बहुत ज्यादा सक्रिय दिखी, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व उतना ही ज्यादा निष्क्रिय बना रहा। बंगाल में राहुल गांधी ने केवल एक जनसभा की। दिल्ली से एकमात्र नेता के रूप में प्रभारी जितिन प्रसाद बंगाल में डेरा डाले रहे। नेतृत्व ने अधीर रंजन को राज्य की कमान सौंपकर सब उनके और राज्य के नेताओं पर छोड़ दिया। पार्टी बंगाल में सियासी रूप से भी लोगों को यह समझाने में असफल रही कि केरल में जिन वामपंथी दलों के खिलाफ है, बंगाल में उनके साथ क्यों है? अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेकुलर फ्रंट से तालमेल क्यों किया? राज्य इकाई के भरोसे चुनाव छोड़कर नेतृत्व ने शायद पहले ही हार मान ली थी।
पहले ही हो गया था हार का अंदेशा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नतीजों से ठीक पहले ही भांप लिया था कि विधानसभा चुनाव में गांधी परिवार या पार्टी नेतृत्व को पांच राज्यों की जनता फिर नकारने जा रही है। यही कारण है कि राहुल ने पार्टी के भीतर अपने खिलाफ उठने वाले आक्रोश को यह कहकर ठंडा करने की कोशिश की कि पार्टी कार्यकर्ता ही नेतृत्व तय करेंगे। राहुल ने न तो नेतृत्व संभालने से इनकार किया और न ही खुद का दावा पेश किया है। माना जा रहा है कि नतीजों के इंतजार में बैठे असंतुष्ट नेता जून में संगठन चुनाव के कार्यक्रम को आगे नहीं बढ़ने देंगे।
यदि हम (कांग्रेसी) मोदी की हार में ही अपनी खुशी ढूंढते रहेंगे, तो अपनी हार पर आत्म-मंथन कैसे करेंगे 🙄
— Dr. Ragini Nayak (@NayakRagini) May 2, 2021
पार्टी में उठी आत्मचिंतन की आवाज
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में जीत के लिए ममता बनर्जी और तमिलनाडु में जीत के लिए एमके स्टालिन को बधाई दी है। राहुल गांधी ने इस बात पर खुशी जताई है कि टीएमसी ने बीजेपी को सत्ता तक नहीं पहुंचने दिया। इस बात को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता रागिनी नायक ने तंज कसा है। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि ‘‘ यदि हम (कांग्रेसी) मोदी की हार में ही अपनी खुशी ढूंढते रहेंगे तो अपनी हार पर आत्म-मंथन कैसे करेंगे।’’ माना जा रहा है कि रागिनी नायक ने भले ही यह ट्वीट बिना कोई नाम लिये किया है, लेकिन उनका निशाना राहुल गांधी के ऊपर ही है।