-बीजेपी व कांग्रेस से जुड़े हैं ज्यादातर राशन डीलर्स
-नयी प्रणाली से ‘अपनों’ को देना चाहते केजरीवाल
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर राशन की डोर-टू-डोर डिलीवरी योजना की फाइल उपराज्यपाल को भेज दी है। इसके साथ ही एक बार फिर इस योजना को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच राशन माफिया को लेकर सियासत शुरू हो गई है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री ने राशन दुकानदारों को ‘राशन माफिया’ बताया था। लेकिन बीजेपी इस योजना का विरोध केवल इसलिए नहीं कर रही है कि इससे दिल्ली के राशन लाभार्थियों के ऊपर कोई नया भार पड़ने वाला है। बल्कि बीजेपी की चिंता दिल्ली में सियासी नुकसान के साथ ही अपने राशन डीलर्स के काम-काज को बचाने की है।
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1980 से 2000 के बीच दिल्ली में अनियमित कालोनियों का तेजी से विस्तार हुआ और जनसंख्या में भी भारी बढ़ोतरी हुई इसके चलते राशन की सरकारी दुकानों की संख्या में भी इजाफा होता गया। इनमें से ज्यादातर दुकानों का आबंटन साल 2000 से पहले का है। इनमें से भी ज्यादातर दुकानों का आबंटन दिल्ली में 1993 से पहले या फिर 1993 से 1998 के बीच हुआ था। दिल्ली में 1993 से 1998 के बीच बीजेपी की सरकार थी। इससे पहले भी लंबे समय तक स्थानीय निकाय में बीजेपी ही शासन में रही है। उस दौरान ज्यादातर दुकानों का आबंटन बीजेपी कार्यकर्ताओं को ही किया गया था। इसके बाद 1998 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार आई तो उसके कार्यकर्ताओं को भी कुछ दुकानों का आबंटन हुआ।
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क्योंकि दिल्ली में राशन वितरण प्रणाली पर ज्यादातर बीजेपी और काग्रेस कार्यकर्ताओं का कब्जा है, इसलिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कोई भी नयी योजना लाकर राशन वितरण प्रणाली पर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का कब्जा चाहते हैं। यही कारण है कि वह बार-बार डोर-टू-डोर डिलीवरी पर जोर दे रहे हैं। ताकि इसके वितरण का जिम्मा अपने चहेते लोगों को दिया जा सके। दूसरी ओर बीजेपी नहीं चाहती कि कोई इस तरह की योजना आये कि उसके राशन दुकानदारों का काम-धंधा छिन जाये। इससे दिल्ली में बीजेपी को तीन तरह का नुकसान हो सकता है। पहला यह कि उससे जुड़े दुकानदारों का काम चला जायेगा जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान होगा। दूसरा यह कि नयी योजना शुरू होने से आम आदमी पार्टी के लोगों के हाथ में यह काम चला जायेगा और उन्हें आर्थिक लाभ होगा और तीसरा यह कि यदि यह योजना सफल रहती है तो बीजेपी को सियासी नुकसान उठाना पड़ेगा।
दिल्ली में उचित दर की दुकानों (फेयर प्राइस शॉप्स) की संख्या 2008 है। दिल्ली में कुल 17 लाख, 78 हजार 141 राशन कार्ड धारक या परिवार हैं और 72 लाख, 77 हजार, 995 लोग सरकारी राशन वितरण प्रणाली का लाभ उठाते हैं। कोरोना की वजह से पिछले साल और इस साल भी बिना राशन कार्ड वालों को भी सरकार की ओर से निःशुल्क राशन मुहैया कराया जा रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री का राशन दुकानदारों को माफिया बताना अपने आप में इस बात को साबित करता है कि बीजेपी और आप दोनों ही सरकारी राशन कारोबार पर अपना कब्जा जमाने की कवायद में जुटे हैं।