-प्रदेश नेतृत्व पर लग रहे गुटबाजी को बढ़ावा देने के आरोप
-प्रदेश के गठन में हो रही देरी से उठ रहे सवाल
हीरेंद्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
केवल सत्ता वाले राज्यों में ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस में घमासान की स्थिति बनी हुई है। अंदरूनी घमासान की वजह से कांग्रेस हाल ही में मध्य प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी है। राजस्थान में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थकों की बगावत की वजह से राज्य की कांग्रेस सरकार मुश्किल में चल रही है। यह वे राज्य हैं जहां पार्टी सत्ता में रही। लेकिन दिल्ली जैसे बिना सत्ता वाले राज्य में भी कांग्रेस की स्थिति ज्यादा ठीक नजर नहीं आ रही है।
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दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच लगातार निराशा बढ़ती जा रही है। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार की ताजपोशी 19 मार्च 2020 को हुई थी। तब से लेकर अब तक वह अपनी प्रदेश की टीम का गठन नहीं कर पाए हैं। हालांकि अप्रैल और मई के दो महीने पूरी तरह से कोरोना और लॉकडाउन की भेंट चढ़ गए थे। लेकिन पूरे जून और आधा जुलाई महीना बीत जाने के बावजूद प्रदेश संगठन के गठन में पार्टी एक कदम भी नहीं बढ़ पाई है।
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प्रदेश कांग्रेस का गठन नहीं हो पाने की वजह से दिल्ली के बचे-खुचे कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेता खुद को पार्टी के साथ जोड़ नहीं पा रहे हैं। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने महंगाई और दूसरे मुद्दों को लेकर प्रदर्शन भी किये हैं। लेकिन इन धरना-प्रदर्शनों में भी ज्यादा लोग नहीं जुट सके। अगले डेढ़ साल बाद दिल्ली में नगर निगम चुनाव होने हैं। ऐसे में पार्टी कितनी मजबूत हो पाएगी? कुछ कहा नहीं जा सकता।
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पार्षदों-पूर्व पार्षदों की अनदेखी
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सबसे ज्यादा नाराजगी पूर्व पार्षदों और पूर्व प्रदेश पदाधिकारियों में है। चौधरी अनिल कुमार के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से अब तक पूर्व पार्षदों, पूव विधायकों और पूर्व पदाधिकारियों की कोई बैठक नहीं बुलाई गई है। इसकी वजह से पार्टी के कार्यकर्ता और नेता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे है। उन्होंने कहा कि बीजेपी और आम आदमी पार्टी की बैठकें नियमित तौर पर हो रही हैं। दूसरे दल अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं, ऐसे में कांग्रेस के नता हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। अभी तक किसी को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है।
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पूर्व विधायकों पर दारोमदार
कांग्रेस के एक दसरे नेता का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष की पहचाना ज्यादातर पूर्व विधायकों के साथ है। खद अनिल कुमार भी विधायक रहे हैं। इसलिए वह केवल कुछ गिने-चुने पूर्व विधायकों के दम पर पार्टी चला रहे है। इसको लेकर दिल्ली कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ती जा रही है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि चार निगम पार्षद और आधा दर्जन पूर्व विधायकों के दम पर पूरी पार्टी नहीं चलाई जा सकती। आने वाले दिनों में दिल्ली में नगर निगम के चुनाव होने हैं, यदि समय रहते किसी को कोई जिम्मेदारी ही नहीं दी जाएगी तो पार्टी चुनाव के लिए मजबूत कैसे हो पाएगी?
विधानसभा चुनाव में भी उठाना पड़ा था नुकसान
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले भी पार्टी में कुछ इसी तरह की स्थिति रही थी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा को नेतृत्व ने देर से कमान दी थी। इसके बावजूद उन्होंने भी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर भरोसा करने के बजाय अपने कुछ चहेतों के दम पर पार्टी का काम चलाया। इसका नतीजा यह हुआ कि चोपड़ा अपनी बेटी को तो राजनीति में स्थापित करने के लिए उतार गए, लेकिन पार्टी सभी 70 सीट बुरी तरह से हार गई थी। यदि नगर निगम चुनाव के लिए अभी से नहीं लगा गया तो 2022 के निगम चुनाव में भी पार्टी की यही हालत होगी।
वजूद स्थापित करने की चुनौती
दिल्ली के सियासी मैदान में कांग्रेस के सामने फिलहाल अपना वजूद बचाए रखने और इसे स्थापित करने की चुनौती बनी हुई है। 15 साल तक दिल्ली की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस बीते विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। यहां तक कि 66 सीट पर तो पार्टी की बुरी तरह से जमानत जब्त हो गई थी। जिसमें आरजेडी को दी गई 4 सीटें भी शामिल हैं। 2022 में तीनों नगर निगम के चुनाव होने हैं। यदि अभी से तैयारी नहीं की गई तो निगम चुनाव में भी पार्टी की हालत खराब हो सकती है।