-चिराग के हाथ से निकली पार्टी और पद, चाचा पशुपति के पास कमान
हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
‘सियासी मौसम वैज्ञानिक’ कहे जाने वाले स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के साथ ‘चिराग तले अंधेरा’ वाली कहावत चरित्रार्थ हो गई है। फिलहाल उनके हाथ से पार्टी की कमान के साथ सारे पद निकल गए हैं। लोक जनशक्ति पार्टी की कमान अभी चिराग के चाचा पशुपति नाथ के हाथों में आ गई है और वह एकदम अलग-थलग पड़ गए हैं। बताया जा रहा है कि चिराग के साथ हुए इस घटनाक्रम के लिए उनके एकतरफा फैसले हैं और एलजेपी को तोड़ने की बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की योजना काम कर गई है।
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करीब छह महीने का समय जरूर लगा लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) में चिराग पासवान को अलग-थलग करने की योजना आखिर परवान चढ़ गई। पार्टी में बगावत की नींव बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही उस समय ही पड़ गई थी जब चिराग ने अपने सांसद चाचा पशुपति पारस को नीतीश की तारीफ करने पर पार्टी से निकालने की चेतावनी दी थी।
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बिहार विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार ने ऑपरेशन चिराग का जिम्मा अपने विश्वस्त सांसद राजीव कुमार उर्फ ललन सिंह को सौंपा था। ललन सिंह ने महेश्वर हजारी और सूरजभान की सहायता से इस ऑपरेशन को कामयाब बनाया। इस दौरान नीतीश का लोजपा के नेताओं और सांसदों से करीबी संबंध भी काम आया। मसलन लोजपा के इकलौते मुस्लिम सांसद महबूब अली कैसर को खुद नीतीश ने साधा। बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में जब कैसर की जगह लोजपा दूसरे नेता को टिकट देने का फैसला कर चुकी थी, तब नीतीश ने रामविलास पासवान से बात करके कैसर का टिकट बचाया था।
इस तरह बिगड़ते चले गये हालात
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान जब चिराग ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का फैसला किया तो उनके सांसद चाचा पशुपति पारस ने इसका विरोध किया था। इसी दौरान जब पारस ने नीतीश की तारीफ की तो चिराग ने उन्हें पार्टी से निकालने की धमकी दे डाली। तब पशुपति और चिराग के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई थी। बाद में नीतीश ने चिराग को धीरे-धीरे एलजेपी से अलग करने की योजना बनाई। सबसे पहले बिहार विधानसभा में एलजेपी के इकलौते विधायक को जदयू में शामिल किया। फिर एलजेपी के 200 पदाधिकारियों को जनता दल यूनाइटेड की सदस्यता दिलाई। आखिर में चिराग को ही पार्टी के संसदीय दल आउट कर दिया।
हर हाल में बढ़ी जेडीयू की ताकत
भले ही अभी यह तय नहीं है कि लोजपा के बागी सांसद पार्टी में बने रह कर चिराग को बाहर का रास्ता दिखाएंगे या जेडीयू में शामिल होंगे। पशुपति ने कहा है कि पार्टी को बचाने के लिए सांसदों को ऐसा करना पड़ा। दूसरी ओर जदयू सूत्रों का कहना है कि ये सभी नीतीश का दामन थाम सकते हैं। अगर अभी जेडीयू में आते हैं तो कम से कम पशुपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। इसके अलावा जेडीयू के सांसदों की संख्या भाजपा के 17 सांसदों के मुकाबले 21 हो जाएगी। ऐसे में नीतीश मंत्रिमंडल में अधिक सीट हासिल करने में कामयाब हो सकते हैं। वैसे भी जदयू ने समान बंटवारे का सवाल उठाते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में पांच सीटों पर दावेदारी की है।
जेडीयू की सियासी ताकत बढ़ाने का फार्मूला
विधानसभा चुनाव में एलजेपी की वजह से जेडीयू राज्य में तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। इसके बाद से नीतीश सतर्क हैं। वह देर सबेर फिर से गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहते हैं। यही वजह है कि चुनावी नतीजे आने के बाद नीतीश पार्टी का पुराना वोटबैंक हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में उन्होंने अपने धुर विरोधी रहे उपेंद्र कुशवाहा को साधा है। उनकी कोशिश राज्य के पसमांदा मुसलमानों में पुराना आधार हासिल करने की भी है।
ये है ताजा घटनाक्रम
दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में सियासी ’तख्तापलट’ हो गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने छह सीटें जीती थीं। इनमें से पांच सांसदों पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया है। इसके बाद चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया गया है। पशुपति ने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बगावत कर दी थी। अब पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ संसदीय दल का नेता भी बना दिया गया।
ऐसे हुई फूट पड़ने की शुरूआत
बिहार की सियासत पर नजर डालें तो पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन के कुछ दिन बाद ही एलजेपी में बगावत की शुरुआत हो गई थी। उस दौरान पशुपति पारस का एक पत्र सामने आया था, जिसमें उनके नेतृत्व में चार सांसदों के अलग होने का जिक्र था। उस समय पशुपति ने इन अटकलों को खारिज दिया था। कुछ दिन बाद ही चिराग ने अपने चाचा को एलजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था। एलजेपी में हुए इस सियासी उलटफेर के लिए बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के रुख को ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने का फैसला चिराग पर भारी पड़ गया। उस समय तो चिराग के इस फैसले से जेडीयू को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था, लेकिन अब वह उसका खमियाजा भुगत रहे हैं।
भारी पड़ी चचेरे भाई की नाराजगी
पार्टी में हुए इस तख्तापलट के लिए चिराग पासवान को जिम्मेदार माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि चिराग को सबसे ज्यादा भरोसा अपने चचेरे भाई और समस्तीपुर से सांसद प्रिंस राज पर था। लेकिन प्रिंस राज उस समय नाराज हो गए थे, जब उनके प्रदेश अध्यक्ष पद में चिराग ने बंटवारा कर दिया था। पार्टी की ओर से उस दौरान राजू तिवारी को कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया था। विधानसभा चुनाव में जब चिराग ने जेडीयू से बगावत की तो हाजीपुर से सांसद और चाचा पशुपति पारस भी नाराज हो गए। इसके अलावा सूरजभान सिंह भी नाराज चल रहे थे तो उनके भाई व नवादा से सांसद चंदन सिंह ने भी बगावत कर दी। कुल मिलाकर एलजेपी में जो ताजा हालात बने हैं, उनके पीछे चिराग पासवान के एकतरफा फैसले हैं।