CONGRESS का G-23 विवादः राहुल जिम्मेदार… डैमेज कंट्रोल में जुटा गांधी परिवार

-दिग्विजय सिंह ने लगाया राहुल गांधी पर आरोप
-राहुल गांधी से बढ़ी वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की नाराजगी
-सोनिया और राहुल ने की फोन पर आजाद से बात

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
कांग्रेस में ‘जी-23’ के पत्र पर भड़की विद्रोह की आग ठंडी पड़ने का नाम नहीं ले रही है। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस में मचे घमासान के लिए पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के ‘बीजेपी से मिलीभगत’ के बयान पर वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में नाराजगी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस कार्यसमिति बैठक के बाद सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं (जी-23) ने अलग से बैठक की थी। इस बैठक में 23 में से ज्यादातर नेता शामिल हुए थे। बताया जा रहा है कि इसके बाद डेमेज कंट्रोल के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने खुद फोन करके गुलाम नबी आजाद व कई दूसरे वरिष्ठ नेताओं से से बात की है।

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कांग्रेस कार्यसमिति बैठक में राहुल गांधी के तीखे बयान से कई वरिष्ठ नेता आहत बताए जा रहे हैं। लेकिन अब पार्टी के भीतर असंतुष्ट नेताओं को मनाने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू हो गई है, ताकि स्थिति को सामान्य किया जा सके। बता दें कि पत्र विवाद पर राहुल गांधी के बयान से आहत गुलाम नबी आजाद ने कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि यदि भाजपा से संबंध की बात साबित हो जाती है तो वह इस्तीफा दे देंगे। वह राहुल के बयान से खासे नाराज थे।

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कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक समाप्त होने के बाद सोनिया ने आजाद के साथ फोन पर बातचीत की। माना जा रहा है कि इस बातचीत में मतभेदों को दूर करने पर जोर दिया गया। असंतुष्ट गुट के विवादित पत्र लिखने के समय को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करने वाले राहुल गांधी ने भी गुलाम नबी आजाद को फोन किया था। राहुल ने कार्यसमिति की बैठक में कहा था कि पत्र लिखने वाले नेताओं की भाजपा से सांठगांठ है। इस पर आजाद ने खासी नाराजगी जाहिर की थी।

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सियासी जानकारों का मानना है कि सोनिया और राहुल गांधी का आजाद को फोन करना इस बात का संकेत है कि पार्टी वरिष्ठ नेताओं को छिटकने नहीं देना चाहती है और वह असंतुष्ट गुट से सुलह करना चाहती है। अभी तक इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि तीनों नेताओं ने एक-दूसरे से क्या बातचीत की, लेकिन कहा जा रहा है कि मतभेदों को दूर करने पर ही चर्चा हुई है।

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कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के सक्रिय होने के बावजूद वरिष्ठ नेताओं के बयान आने का सिलसिला नहीं रूक रहा है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पार्टी में आई इस स्थिति के लिए सीधे तौर पर राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं थे लेकिन पर्दे के पीछे से पार्टी पर उनका नियंत्रण था। इस वजह से भी पार्टी नेताओं में असंतोष बढ़ा है। उन्होंने कहा है कि राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी में असंतोष और परवान चढ़ा है।
दिग्विजय सिंह ने उदाहरण देते हुए कहा कि मुकुल बनानी और केसी वेणुगोपाल की जगह राजीव सातव के नामांकन के लिए राहुल गांधी ने हामी भरी। इससे पार्टी में और नाराजगी बढ़ गई। बता दें कि पिछले दिनों भी शरद पवार के सुर में सुर मिलाते हुए दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी को नसीहत दी थी। उन्होंने सलाह देते हुए उन्हें और एक्टिव रहने के लिए ट्वीट किया था। इसे लेकर दिग्विजय सिंह पार्टी के अंदर ही घिर गए थे। तब भी तमिलनाडु के एक सांसद और राजीव सातव ने दिग्विजय सिंह पर हमला बोला था।
पार्टी नेताओं से नहीं मिलते सोनिया-राहुल!
कांग्रेस नेता अनिल शास्त्री ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में कुछ चीजों की कमी है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पार्टी के नेताओं के बीच बैठकें ही नहीं होती हैं। अगर राज्यों के पार्टी नेता दिल्ली आते हैं, तो उनके लिए वरिष्ठ नेताओं से मिलना आसान नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि ’सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे सीनियर नेता पार्टी नेताओं से मिलना शुरू कर दें तो 50 फीसदी समस्या खत्म हो जाएगी।’ बता दें कि अनिल शास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के छोटे बेटे हैं।
पत्र लिखने वालों ने रखा अपना पक्ष
सोनिया गांधी को पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल कई नेताओं ने कहा है कि उन्हें विरोधी नहीं समझा जाए। उन्होंने कभी भी पार्टी नेतृत्व को चुनौती नहीं दी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा है कि पत्र लिखने वाले नेताओं का इरादा देश के मौजूदा माहौल को लेकर साझा चिंताओं से नेतृत्व को अवगत कराना था और यह सब पार्टी के हित में किया गया।
पार्टी कि राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने ट्वीट कर कहा कि ’हम विरोधी नहीं हैं, बल्कि पार्टी को फिर से मजबूत करने के पैरोकार हैं। यह पत्र नेतृत्व को चुनौती देना नहीं था, बल्कि पार्टी को मजबूत करने के उद्देश्य से कदम उठाने के लिए था। चाहे अदालत हो या फिर सार्वजनिक मामले हों, उनमें सत्य ही सर्वश्रेष्ठ कवच होता है। इतिहास बुजदिल को नहीं, बहादुर को स्वीकारता है।’ इस ट्वीट के जवाब में आनंद शर्मा ने लिखा कि ’अच्छा कहा। पार्टी के हित में और देश के मौजूदा माहौल एवं संविधान के बुनियादी मूल्यों पर लगातार हो रहे हमलों को लेकर अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए पत्र लिखा गया।’
पत्र का मकसद पार्टी को मजबूत बनाना
इस ट्वीट के जवाब में कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक ने लिखा कि इस पत्र को अपराध के तौर पर देखने वालों को आज नहीं तो कल, इसका अहसास जरूर होगा कि पत्र में उठाए गए मुद्दे विचार योग्य हैं। बता दें कि वासनिक ने भी पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। जी-23 में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली ने सोनिया गांधी के नेतृत्व की तारीफ करते हुए और उनके अंतरिम अध्यक्ष बने रहने का स्वागत करते हुए लिखा कि पत्र का मकसद पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव और अन्य चुनावों के लिए तैयार करना था तथा पार्टी के प्रति उनकी वफादारी जीवन भर रहेगी।
आर्टिकल 370 पर कांग्रेस के रवैये से निराश हैं आजाद?
कुछ कांग्रेसी नेताओं का मानना है कि गुंलाम नबी आजाद यह मानते हैं कि आर्टिकल 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटने का कठोर विरोध करने में कांग्रेस पार्टी असफल रही है। जिसकी चुभन उन्हें आज भी है। उन्हें लगा कि पार्टी ने आसान रास्ता चुना, इसलिए वो पार्टी से खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं। राहुल गांधी के कार्यसमिति में दिये बयान के बाद उन्हें और ज्यादा धक्का लगा है।
खड़गे के आने से बढ़ी आजाद की चिंता?
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का यह भी कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, पूर्व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा, पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल जैसे दिग्गज नेताओं के साथ-साथ अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल जैसे प्रतिष्ठित वकील राज्यसभा के सदस्य हैं। अब मल्लिकार्जुन खड़गे भी राज्यसभा के सदस्य हो चुके हैं। लोकसभा में कांग्रेस के नेता रह चुके खड़गे ऊपरी सदन में भी अपनी छाप छोड़ सकते हैं। वहीं राज्यसभा में गुलाम नबी का पांचवा कार्यकाल अगले साल खत्म हो रहा है। ऐसे में उनकी चिंता और बढ़ गई है।