CONGRESS: चौहान बांगर सीट… ‘चौधरी’ की नहीं ‘मतीन’ की जीत!

-उपचुनाव में पांच में से 4 सीट पर गिरा कांग्रेस का वोटिंग ग्राफ
-1 सीट पर जीत में प्रदेश कांग्रेस का नहीं कोई योगदान!

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
दिल्ली में नगर निगम की पांच सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भले ही एक सीट पर भारी मतों से जीत हासिल कर ली है, लेकिन पार्टी के लिए यह चुनाव बेहद निराशाजनक रहा है। पार्टी में चर्चा है कि प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व इस उपचुनाव में बुरी तरह से असफल रहा है। पार्टी में कांग्रेस को मिली चौहान बांगर सीट पर जीत को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ‘चौधरी’ अनिल कुमार के बजाय सीलमपुर सीट से पार्टी के पूर्व विधायक चौधरी ‘मतीन’ अहमद की जीत माना जा रहा है। बता दें कि चौधरी मतीन अहमद अपना पहला विधानसभा चुनाव कांग्रेस के बजाय जनता दल के टिकट पर जीते थे। बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

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इस बार चौहान बांगर सीट से निगम का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर पूर्व विधायक मतीन अहमद के बेटे चौधरी जुबैर अहमद ने जीता है। उन्होंने अब तक के सारे आंकड़ों को ध्वस्त करते हुए 10 हजार 642 वोटों के अंतर से यह चुनाव जीता है। मुस्लिम मतदाताओं वाली इस सीट पर उनका मुकाबला आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक हाजी इशराक के साथ था। आम आदमी पार्टी ने इसी सीट पर 2017 के निगम चुनाव में कांग्रेस को केवल 2342 वोट्स के अंतर से हराया था। लेकिन कांग्रेस ने उपचुनाव में आप को अब तक के सबसे बड़े अंतर से हराया है। पिछली बार कांग्रेस को इस सीट पर केवल 6488 वोट ही मिले थे। लेकिन इस बार कांग्रेस के चौधरी जुबैर अहमद को 16 हजार 203 वोट मिले हैं।

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वार्ड संख्याः 41-ई चौहान बांगर सीट पर कांग्रेस की जीत को पूर्व विधायक चौधरी मतीन अहमद की जीत माना जा रहा है। बताया जा रहा है कि चौधरी मतीन अहमद पिछले समय में लगातार स्थानीय लोगों के साथ जुड़े रहे हैं। वह दंगों के दौरान भी स्थानीय हिंदू-मुस्लिम आबादी के साथ बने रहे और लोगों की मदद की। जबकि आम आदमी पार्टी के विधायक और पूर्व विधायक लोगों से दूरी बनाये रहे। सियासी विशेषज्ञों का कहना है कि निगम उपचुनाव में मतीन अहमद को अपने पुराने संबंधों, मिलनसार व्यवहार और लोगों के साथ लगातार जुड़े रहने का फायदा मिला है। जबकि कांग्रेस नेतृत्व या संगठन की वजह से पार्टी की लोकप्रियता में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।

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बता दें कि उपचुनाव वाली 5 में से 4 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले मतों का ग्राफ तेजी से गिरा है। उत्तरी दिल्ली की राहिणी-सी सीट पर 2017 के निगम चुनाव में कांग्रेस के अजय राणा को 2984 वोट हासिल हुए थे और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। 2021 के उपचुनाव में भी कांग्रेस 6 उम्मीदवारों में से तीसरे स्थान पर ही रही है और पार्टी उम्मीदवार मेमवती बरवाला को केवल 2587 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा है। इस सीट पर 30 हजार 817 वोट डाले गये थे। यानी कांग्रेस को 10 फीसदी से भी कम वोट हासिल हुए हैं। वहीं उत्तरी दिल्ली की ही शालीमार बाग नॉर्थ सीट पर 2017 के निगम चुनाव में कांग्रेस को 3327 वोट हासिल हुए थे और पार्टी की सुनीता शर्मा तीसरे स्थान पर रहीं थीं। 2021 के चुनाव में भी कांग्रेस 3 उम्मीदवारों में से तीसरे स्थान पर ही रही है और पार्टी उम्मीदवार ममता को महज 2416 वोट ही हासिल हुए हैं। इस सीट पर कुल 19 हजार 426 वोट पड़े थे। यानी यहां कांग्रेस का ग्राफ करीब 12 फीसदी के आसपास रहा।

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साल 2017 के नगर निगम चुनाव में पूर्वी दिल्ली की त्रिलोकपुरी ईस्ट सीट पर कांग्रेस की अंजना 4510 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहीं थीं। 2021 में कांग्रेस उम्मीदवार बालकिशन को केवल 3028 वोट ही हासिल हो सके। हालांकि कांग्रेस इस सीट पर अपना तीसरा स्थान बनाये रखने में कामयाब रही। इस सीट पर 25 हजार 710 वोट डाले गये थे। पूर्वी दिल्ली की ही कल्याणपुरी सीट पर कांग्रेस के धर्मपाल मौर्या को 2017 के निगम चुनाव में 5355 वोट हासिल हुए थे और वह तीसरे स्थान पर रहे थे। 2021 में कांग्रेस ने फिर से उन्हें चुनावी मैदान में उतारा और उन्हें पिछली बार के मुकाबले आधे यानी 2673 वोट ही हासिल हो सके। हालांकि इतने बड़े अंतर के बावजूद कांग्रेस का तीसरा स्थान बरकरार रहा। कल्याणपुरी सीट पर 25 हजार 287 वोट पड़े थे।

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रोहिणी-सी, शालीमार बाग नॉर्थ, त्रिलोकपुरी ईस्ट और कल्याणपुरी सीट पर कांग्रेस को 10 से 12 फीसदी के आसपास वोट हासिल हुए हैं। जबकि 2017 के निगम चुनाव में कांग्रेस का ग्राफ 30 फीसदी के आसपास रहा था। सियासी जानकारों का कहना है कि ऐसे में किसी भी तरह से चौहान बांगर सीट पर कांग्रेस की जीत का श्रेय प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व या कांग्रेस संगठन को नहीं दिया जा सकता। यदि कांग्रेस को 2022 के निगम चुनाव में अपने आपको साबित करना है तो जमीन पर उतरकर मेहनत करनी होगी। जो कि फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।