निगम पर ढीली पड़ी BJP की पकड़… फैसले लेने में नहीं पूछ रहे अफसर!

-मीडिया में आने के बाद होती है बीजेपी नेताओं को फैसलों की जानकारी
-मानसिक तौर पर अधिकारियों ने भी माना, सत्ता में आयेगी ‘आप’

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
राजधानी के तीनों नगर निगमों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की पकड़ अब नगर निगमों पर ढीली पड़ती जा रही है। नगर निगम के फैसले लेने में अधिकारियों ने भी बीजेपी नेताओं को भरोसे में लेना बंद कर दिया है। जिसके चलते आम आदमी पार्टी के सामने बीजेपी हर सियासी लड़ाई में पिछड़ती जा रही है। कमजोर नेतृत्व को नगर निगमों की बागडोर सोंपने के बाद अब प्रदेश बीजेपी नेतृत्व भी स्थिति को संभाल पाने में अपने आप को मजबूर पा रहा है।

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हाल ही में उत्तरी दिल्ली नगर निगम से संबंधित ऐसे दो बड़े मामले सामने आये हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो गया कि फैसलों को कार्यान्वयन होने और उसकी खबरें मीडिया में आ जाने के बाद बीजेपी नेताओं को पता लगता है। पहला मामला निगम विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चें के मिड-डे-मील से संबंधित है। इस मामले में नरेला जोन के एक अधिकारी ने आदेश जारी कर दिया था कि मिड-डे मील के सूखे राशन की किट केवल उन्हीं बच्चों को दी जायेगी, जो बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं में शामिल हो रह हैं। इस मामले को आम आदमी पार्टी ने जोर-शोर से उठाया था। इसके बाद बीजेपी नेताओं को पता पड़ा और पूरी की पूरी पार्टी को सफाई देने के लिए सामने आना पड़ा। इसके बावजूद अभी तक बीजेपी ने उस अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाये हैं।

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दूसरा मामला करोलबाग के सरस्वती मार्ग पर स्थित एमसीडी मार्केट का है। करोलबाग जोन के निगम अधिकारियों की ओर से यहां के दुकानदारों को तीन दिन में दुकानें खाली करने के आदेश जारी कर दिये गये, लेकिन बीजेपी नेताओं को भनक तक नहीं लगी। आश्चर्य की बात तो यह है बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता खुद करोलबाग जोन के एक वार्ड से ही निगम पार्षद हैं और इसी जोन में रहते भी हैं। जब यह मामला मीडिया में आया और संबंधित दुकानदारों, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने विरोध जताया तब जाकर बीजेपी नेताओं की नींद खुली और उन्हें आनन-फानन में 10 दिन का टाइम दे दिया गया। यह मामला लगातार तूल पकड़ता जा रहा है और प्रदेश बीजेपी नेतृत्व व निगम के नेताओं की नाकामी की वजह से बीजेपी की किरकिरी हो रही है।

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एक और मामला दक्षिणी दिल्ली नगर निगम से जुड़ा है। यहां नजफगढ़ जोन के गोदाम में सफाई कर्मियों की लाखों रूपये की वर्दियां पिछले कई वर्षों से धूल फांक रही हैं। लेकिन इसके बारे में निगम की सत्ता में काबिज बीजेपी के किसी भी नेता को कोई जानकारी नहीं है कि इन वर्दियों की सप्लाई किस कंपनी ने की थी। किन अधिकारियों ने इन वर्दियों का ऑर्डर दिया था और किन अधिकारियों ने वर्दियों को रिसीव किया था। इसके लिए कितना भुगतान किया गया और इस घोटाले के कौन अधिकारी या सत्ताधारी दल के नेता जिम्मेदार हैं? एक और पूरी दिल्ली बीजेपी और तीनों निगमों के नेता दिल्ली की केजरीवाल सरकार कोे फंड को लेकर आलोचना करते रहते हैं, दूसरी ओर अपनी सत्ता वाले नगर निगम में इतने बड़े स्तर पर हो रहे घोटालों एक भी नेता बोलने को तैयार नहीं है।
बीजेपी के दोबारा सत्ता में आने पर अधिकारियों को शंका
प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पार्टी दिल्ली में लगतार कमजोर हो रही है। शायद इसका अनुमान नगर निगम के आला अधिकारियों को भी हो गया है। यही कारण है कि अब निगम के फैसलों में अधिकारियों ने नगर निगम के नेताओं को भरोसे में लेना बंद कर दिया है। मिड-डे मील और गफ्फार मार्केट का मामला जोन स्तर के हैं। ऐसे मामलों की जानकारी भी यदि पार्टी के नेताओं को पहले से नहीं थी, तो हेडक्वार्टर स्तर के मामलों की इन नेताओं को कितनी जानकारी होगी? यही बड़ा सवाल है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को भी अब लगने लगा है कि बीजेपी दोबारा निगम की सत्ता में नहीं आयेगी। इसलिए उन्होंने अपना स्टेंड बदलना शुरू कर दिया है।