विधानसभा सीट

निगम चुनाव के लिए बीजेपी तैयार… निगमों के कामकाज पर नहीं भरोसा… मोदी सरकार पर दारोमदार!

-पन्ना प्रमुखों की बैठकों में घर-घर जाकर मोदी सरकार के काम गिनाने की नसीहत

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली में निगम चुनाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी सहित सभी छोटे-बड़े सियासी दलों ने इसके लिए कमर कसना शुरू कर दिया है। बीजेपी ने आनन-फानन में करीब डेढ़ साल से लंबित चले आ रहे कई मोर्चों, प्रकोष्ठों और सेल का गठन कर दिया है। मोर्चों और प्रकोष्ठों की बैठकें भी शुरू हो गई हैं। लेकिन पार्टी के पास जनता के बीच जाकर गिनाने के लिए नगर निगम का एक भी काम नहीं है। इसका एक उदाहरण हाल ही में हुईं जिलावाइज पन्ना प्रमुखों की बैठकों में भी देखने को मिला।

यह भी पढ़ेंः करोलबागः निगम अधिकारियों व नेताओं का गठजोड़… बिल्डर माफिया ने किया अरबों रूपये का खेल!

बता दें कि प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने बीते सप्ताह में दिल्ली बीजेपी के जिलानुसार पन्ना प्रमुखों की बैठकें ली हैं। इन बैठकों में पन्ना प्रमुख सेल के प्रमुख और प्रदेश उपाध्यक्ष अशोक गोयल ने जोर दिया कि सभी पन्ना प्रमुख अपने अपने इलाकों में घर-घर जाकर केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं और किये जा रहे जनहित के कार्यों के बारे में लोगों को बतायें। इससे पार्टी को आने वाले दिनों में निगम चुनाव में मदद मिलेगी। लेकिन इस बात को लेकर खुद पार्टी में ही प्रश्न चिन्ह खड़े हो गये हैं।

यह भी पढ़ेंः ‘आप’ एमएलए ने कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर बीजेपी मेयर मुकेश सुर्यान के खिलाफ डीएम को दी शिकायत, एफआईआर की मांग

पार्टी नेताओं का कहना है कि आने वाले दिनों में नगर निगम के चुनाव होने हैं। पिछले दिनों में उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली नगर निगमों में हुए 5 सीटों पर उपचुनाव में पार्टी को मोदी सरकार के कामकाज पर लड़ते हुए बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था। साल 2015 और 2020 का विधानसभा चुनाव भी बीजेपी मोदी सरकार के कामकाज पर लड़कर बुरी तरह से हार चुकी है। ऐसे में एक बार फिर से मोदी सरकार के नाम पर निगम चुनाव की तैयारी करना कहां तक उचित रहेगा?

यह भी पढ़ेंः पिटते-पिटते बचे बीजेपी के पूर्व महापौर… महंगा पड़ा सियासी दांव!

बता दें कि कांग्रेस के पास जहां नगर निगम में सत्ताधारी बीजेपी और दिल्ली सरकार में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के विरोध में प्रचार करने का विकल्प है। वहीं आम आदमी पार्टी के पास नगर निगम चुनाव में अपनी दिल्ली सरकार के कामकाज पर चुनाव लड़ने का विकल्प है। लेकिन दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व को अपनी सत्ता वाले निगमों के कामकाज पर भरोसा नहीं है। पिछले 15 वर्षों से नगर निगमों की सत्ता में रहने के बावजूद बीजेपी नेता अपने निगम के कामों पर चुनाव लड़ने या निगम द्वारा किये गये जनहित के कामों पर चर्चा करने में संकोच कर रहे हैं।
नगर निगम चुनाव में भ्रष्टाचार है सबसे बड़ा मुद्दा
नगर निगम चुनाव में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा उभर कर आ रहा है। निगमों में प्रमुख विपक्ष दल आम आदमी पार्टी बीजेपी के 15 वर्षों के शासन के दौरान हुई निगमों की हालत और बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठा रही है। दूसरी ओर कांग्रेस भी नगर निगम में सत्ताधारी बीजेपी के कामकाज को लेकर सवाल उठा रही है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वयं निगम पार्षद हैं। इसके बावजूद दिल्ली बीजेपी के नेता अपनी सत्ता वाले नगर निगमों के कामकाज के बजाय मोदी सरकार के भरोसे निगम चुनाव में उतरना चाहते हैं।
सरकारी संपत्तियों की बिक्री को लेकर बैकफुट पर बीजेपी
उत्तरी दिल्ली नगर निगम की सरकारी संपत्तियों को बेचे जाने के मामले में प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के नेता भारी सियासी दबाव में हैं। चर्चा आम है कि नगर निगमों की कमान अब निगम आयुक्त, मेयर या स्थायी समिति अध्यक्षों के हाथों में नहीं है, बल्कि प्रदेश बीजपी कार्यालय से सबकुछ नियंत्रित किया जा रहा है। बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि पिछले दिनों सरकारी संपत्तियों को बेचे जाने के मामले में प्रदेश बीजेपी के नेता बैकफुट पर आ गये हैं। अब दूसरी संपत्तियों को लीज होल्ड के बजाय फ्रीहोल्ड करके बेचे जाने पर तो दबाव और ज्यादा बढ़ गया है।
निगम के कामकाज से उठ रहा भरोसा
दिल्ली बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता का कहना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते प्रदेश बीजेपी नेतृत्व नगर निगम के कामकाज को ज्यादा चर्चा में नहीं लाना चाहता है। यदि निगम के कामकाज की चर्चा की जायेगी तो उसके भ्रष्टाचार की भी चर्चा होगी। ऐसे में मोदी सरकार के कामकाज को चर्चा में बनाये रखकर खुद के ऊपर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों से बचा जा सकेगा। यही कारण है कि प्रदेश बीजेपी नेतृत्व का निगम के कामकाज पर से भरोसा उठ गया है और पन्ना प्रमुखों को हिदायत दी गई है कि वह घर-घर जाकर मोदी सरकार के कामकाज की ही चर्चा करें।
कौन होता है पन्ना प्रमुख?
मतदाता सूची के एक-एक पेज की जिम्मेदारी एक-एक व्यक्ति को अलग अलग दी जाती है। मतदाता सूची के एक पेज पर करीब 30 मतदाताओं के नाम होते हैं। एक पन्ना प्रमुख को इन 30 मतदाताओं से संपर्क करने की जिम्मेदारी दी जाती है। दिल्ली बीजेपी के नेताओं ने 2020 के विधानसभा चुनाव में भी पन्ना प्रमुखों को यह जिम्मेदारी दी थी। लेकिन चुनावी नतीजों को सभी को मालूम है। एक बार फिर से मोदी सरकार के कामकाज को घर घर पहुंचाने की जिम्मेदारी पन्ना प्रमुखों को दी गई है। लेकिन यह पन्ना प्रमुखों के सामने अब यह सवाल खुद खड़ा हो गया है कि निगम चुनाव में निगम के कामों के बजाय मोदी सरकार के कामों का सहारा कितना कारगर साबित होगा?
प्रदेश नेतृत्व को सता रहा हार का डर!
प्रदेश बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता का कहना है कि वर्तमान प्रदेश नेतृत्व को निगम चुनाव में हार का डर सता रहा है। यही कारण है कि प्रदेश के नेता निगम के कामकाज की चर्चा के बजाय मोदी सरकार के काम की चर्चा कर रह हैं। यदि निगम चुनाव में पार्टी को हार मिलती है तो आसानी से इस हार का ठीकरा मोदी सरकार के सिर फोड़ा जा सकेगा। यदि निगम के कामकाज पर चुनाव लड़ा गया और फिर भी हार का सामना करना पड़ा तो इसका ठीकरा खुद के सिर पर फूटेगा।