BIHAR विधानसभा चुनाव… बीजेपी के 30 विधायकों के टिकट पर लटकी तलवार!

-बीजेपी के मंडल अध्यक्षों ने पार्टी नेतृत्व से की टिकट काटने की सिफारिश
-25-30 हजार के अंतर से चुनव हारने वालों को भी टिकट नहीं देने की सिफारिश

एसएस ब्यूरो/ पटना
बिहार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के करीब 30 विधायकों का पत्ता साफ हो सकता है। पार्टी के मंडल अध्यक्षों ने राज्य के 30 विधायकों का टिकट काटने की सिफारिश की है। इसे पार्टी नेतृत्व के लिए भी बड़ी चुनौती माना जा रहा है। मंडल अध्यक्षों ने अपनी सिफारिश में दो टूक कहा है कि ये तीस विधायक अगर फिर से उम्मीदवार बनाए गए तो उनकी जीत मुश्किल होगी। इतना ही नहीं पार्टी की मंडल इकाईयों ने ऐसे नेताओं को भी टिकट नहीं देने की सलाह दी है, जो बीते चुनाव में 25 से 30 हजार या इससे ज्यादा मतों से चुनाव हार गए थे।

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बता दें कि एनडीए में अभी सीटों की संख्या का औपचारिक ऐलान भले ही नहीं हुआ है लेकिन अंदरखाने उम्मीदवार भी तय हो रहे हैं। खासकर वैसी सीटें जहां पर एनडीए में कोई विवाद नहीं है। उन सीटों पर भाजपा में भी अधिकतर नेताओं को क्षेत्र में जाकर काम करने को कहा गया है। इसी क्रम में हाल ही में पार्टी ने मंडल अध्यक्षों से उम्मीदवारों के मसले पर राय मांगी है। सभी मंडल अध्यक्षों ने उम्मीदवारों के चयन पर अपनी राय दी है। बिहार भाजपा के 45 संगठनात्मक जिले हैं और इनके तहत लगभग 11 सौ संगठनात्मक मंडल हैं। पार्टी ने अपने इन्हीं मंडल अध्यक्षों के साथ रायशुमारी की हैं।

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पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि भाजपा के मौजूदा 53 में से 30 से अधिक विधायकों के खिलाफ मंडल अध्यक्षों ने अपनी राय दी है। उन्होंने दो टूक कहा है कि अगर पार्टी की पक्की जीत सुनिश्चित करनी है तो चेहरे बदला जाना जरूरी है। हालांकि मंडल अध्यक्षों ने यह भी कहा है कि मतदाताओं में दल के प्रति निष्ठा बरकरार है। पार्टी की जीत पक्की है लेकिन उम्मीदवारों को लेकर लोगों की नाराजगी है। यह नाराजगी चुनाव में भारी न पड़ जाए, इसके लिए यह जरूरी है कि उम्मीदवार बदलकर नए चेहरों को मौका दिया जाए।
ज्यादा अंतर से चुनाव हारने वालों को नहीं मिलेगा टिकट!
पार्टी के मंडल अध्यक्षों ने रायशुमारी के दौरान कहा है कि वैसे उम्मीदवारों को भी टिकट देने से परहेज किया जाना चाहिए जो 2015 के विधानसभा चुनाव में 25-30 हजार या इससे अधिक मतों से चुनाव हारे थे। उनका मानना है कि अधिक मतों से हारने वाले प्रत्याशियों चुनाव में जीत हासिल पर संशय है। वर्ष 2015 के चुनाव में पिपरा से विश्वमोहन कुमार- 36369 मतों से चुनाव हार गए थे। इसी तरह सुपौल से किशोर कुमार-37397 से, अमौर से सबा जफर-51997 से, बिहारीगंज से रवीन्द्र चरण यादव-29253 से, मधेपुरा से विजय कुमार विमल- 37642 से, सहरसा से आलोक रंजन-39206 से, गरखा से ज्ञानचंद मांझी-39883 से, सोनपुर से विनय कुमार सिंह-36396 मतों से हार गए थे। जबकि समस्तीपुर से रेणु कुमारी-31080 से, सराय रंजन से रंजीत निर्गुनी-34044 से, रोसड़ा से मंजू हजारी-34361 से, बखरी से रामानंद राय-40256 से, परबत्ता से रामानुज चौधरी-28924 से, सूर्यगढ़ा से प्रेमरंजन पटेल-30030 से, बिक्रम से अनिल कुमार-44311 से, राजपुर से विश्वनाथ राम-32788 से व बोधगया से श्यामदेव पासवान-30473 मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
बीजेपी के मौजूदा विधायकों का विरोध
बिहार में बीजेपी के कई मौजूदा विधायकों के प्रति विरोध जारी है। हाल ही, में लखीसराय के विधायक और श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा के खिलाफ प्रदेश भाजपा कार्यालय में भारी विरोध हुआ था। दानापुर उम्मीदवार बदलने को लेकर भी कार्यकर्ताओं ने प्रदेश कार्यालय में जमकर हंगामा किया था। बांकीपुर में एक भाजपा की नेत्री बड़े-बड़े होर्डिंग, बैनर-पोस्टर लगवाकर खुद को उम्मीदवार बनाने में जुटी हैं। कुम्हरार में पटना महानगर से जुड़े नेता-कार्यकर्ताओं ने बैनर-पोस्टर लगाने के साथ ही उम्मीदवार बदलने को लेकर आलाकमान को पत्र भी सौंपा है। बोचहां में भी उम्मीदवार को लेकर नाराजगी के स्वर उभर चुके हैं। जब तक टिकट का वितरण नहीं होगा, तब तक बीजेपी के कार्यकर्ताओं की यह नाराजगी जारी रहेगी।
कई को टिकट पक्का होने का भरोसा
बीजेपी के कई मौजूदा विधायक या हारे हुए उम्मीदवार इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि उनका टिकट नहीं कटेगा। अन्य दलों की तरह ही भाजपा में भी धीरे-धीरे वह संस्कृति पनपने लगी है कि किसी आला नेता को पकड़कर विधायक का टिकट कन्फर्म करा लें। दल की सेवा करने के बजाए नेताओं के आसपास रहने वाले ऐसे लोगों की सक्रियता बढ़ने के कारण अगर फिर से टिकट पा लें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। ऐसे में मंडल अध्यक्षों की अनुशंसा रद्दी की टोकडरी में ही पड़ी रह जाए तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं होगी।