बिहार विधानसभा चुनावः एक कुर्सी और 6 दावेदार

-हर गठबंधन से एक व्यक्ति मुख्यमंत्री पद का दावेदार
-बीजेपी नीत एनडीए में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार

एसएस ब्यूरो/ पटना
बिहार में विधानसभा चुनाव का पारा चरम पर है। इस सियासी मैदान के कुछ दिलचस्प पहलू भी हैं। पहली बात तो यह है कि हर गठबंधन से एक नेता मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल है। वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए में मुख्यमंत्री पद के दो दावेदार खड़े हो गए हैं। खास बात यह भी है कि इस बार के चुनाव में गठबंधनों की संख्या ही नहीं बल्कि मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की संख्या भी काफी ज्यादा है।

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मुख्यमंत्री पद के छह दावेदारों में जदयू, भाजपा, हम और वीआईपी के गठबंधन एनडीए ने फिर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है। लेकिन इस बार राजद, कांग्रेस और तीन वामदलों के महागठबंधन ने इस बार अपना चेहरा बदल लिया है। खास बात है कि एनडीए में शामिल दलों की ओर से एनडीए के नीतीश कुमार और एलजेपी के चिराग पासवान मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल हैं।

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महागठबधन की ओर से इस बार तेजस्वी प्रसाद यादव सीएम पद के उम्मीदवार हैं। इसके अलावा छह दलों को मिलाकर बने ग्रांड डेमोक्रेटिक सेकुलर एलायंस ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा और प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ने पप्पू यादव को अपना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाया है। वहीं चिराग पासवान ने खुद को कभी सीएम उम्मीदवार घोषित तो नहीं किया है, लेकिन उनकी पार्टी लोजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताया है। चुनाव के ठीक पहले प्लुरल्स नाम से नई पार्टी बनाने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी ने भी खुद को अगला मुख्यमंत्री घोषित कर रखा है।
दावेदारों पर एक नजरः
नीतीश कुमार
सबसे प्रबल दावेदार नीतीश कुमार एनडीए का मुख्यमंत्री का चेहरा हैं। उनका संसदीय जीवन का भी लंबा अनुभव रहा है। नीतीश पहली बार 1985 में बिहार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। वह 9वीं लोकसभा के लिए 1989 में पहली बार सांसद चुने गए। इसके बाद 1991, 1996, 1998, 1999 व 2004 में भी लोकसभा के लिए चुने गए थे।
नीतीश कुमार अप्रैल से नवंबर 1990 में केन्द्रीय कृषि व सहकारिता राज्य मंत्री रहे। इसके बाद 19 मार्च 1998 से 5 अगस्त 1999 तकःवह केंद्रीय रेल मंत्री रहे। 13 अक्टूबर 1999 से 22 नवंबर 1999 तक भू-तल परिवहन मंत्री और 27 मई 2000 से 20 मार्च 2001 तकः कृषि मंत्री रहे। 22 जुलाई 2001 से 21 मई 2004 तक उन्होंने रेल मंत्रालय संभाला। नीतीश कुमार 3 से 10 मार्च 2000 पहली बार सात दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री रहे। इसके पश्चात 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक, 26 नवंबर 2010 से 17 मई 2014 और 22 फरवरी 2015 से अब तक बिहार के मुख्यमंत्री हैं।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम बहुत से काम जुड़े हैं। राज्य में पूर्ण शराबबंदी। कृषि विकास के लिए रोडमैप बनाया। मुख्यमंत्री के रूप में बिहार में सड़कों का जाल बिछाया। बंद पड़े पुल निगम और बीज निगम को शुरू किया। पंचायत और नौकरी में महिलाओं को आरक्षण दिलाया। स्कूली बच्चों के लिए साइकिल व पोशाक योजना शुरू की। राज्य के हर गांव में बिजली पहुंचायी। भागलपुर दंगा पीड़ितों को हर माह पांच हजार पेंशन दिलाई। मदरसा शिक्षकों को पुनरीक्षित वेतनमान दिया। नालंदा में आयुध कारखाना खुलवाया और नालंदा में ही रेल कोच कारखाना खुलवाया। दीघा, कोसी और मुंगेर में रेल पुल व पटना में आईसीएआर का क्षेत्रीय कार्यालय बनाया।
तेजस्वी यादव
महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को अपना सीएम का चेहरा बनाया है। उनका संसदीय जीवन का अनुभव बहुत कम है। वह 2015 के विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनावी मैदान में उतरे और जीतकर विधायक बने थे। उनके सियासी खाते में सामाजिक बदलाव के लिए पिता लालू प्रसाद द्वारा किये गये कार्य ही हैं। नीतीश कुमार की अगुवायी में बने महागठबंधन की सरकार में उनके पास सड़क और भवन विभाग था। लेकिन बाद में जदयू के महागठबंधन से अलग होने से वह सरकार से बाहर हो गये थे। एक ही कार्यकाल में उन्हें उप मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष दोनों का अनुभव मिला है।
तेजस्वी यादव 2015 में पहली बार विधायक बने थे। उसी साल में उप मुख्यमंत्री बन गये थे। उनका संसदीय जीवन छोटा होने के कारण तेजस्वी यादव के पास उपलब्धियां कम ही हैं। पथ निर्माण मंत्री के रूप में पटना में गंगा पर छह लेन पुल का पहला पुल उनकी बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। हालांकि यह पुल पहले से निर्माणाधीन था। छपरा में पहला डबल डेकर पुल का प्रस्ताव उन्होंने दिया था। वह पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आवाज उठाते रहे हैं। तेजस्वी ने पार्टी को माई (मुस्लिम-यादव) समीकरण से निकालकर ए टू जेड (सर्व समाज) की पार्टी बनाने की पहल की।
उपेन्द्र कुशवाहा
ग्रांड डेमोक्रेटिक सेकुलर एलायंस के सीएम उम्मीदवार उपेन्द्र कुशवाहा हैं। उनका राजनीतिक जीवन भी लंबा है। उन्होंने बीस साल पहले पहली बार विधायक बनकर ससंदीय जीवन की शुरुआत की थी। पहले वह जदयू में थे बाद में 2013 में उन्होंने रालोसपा का गठन किया। वह वर्ष 2000 में पहली बार विधायक बने। पहले विधान सभा के उप नेता और फिर नेता प्रतिपक्ष नियुक्त किए गए। 2010 में जदयू कोटे से राज्यसभा सांसद चुने गये।
उपेंद्र कुशवाहा 2014 में एनडीए में शामिल हो गए और सांसद चुने गए। 2014 में ही उन्हें मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री बनाया गया। उनके नाम मोतिहारी और बोधगया में केन्द्रीय विश्वविद्यालय शुरू कराने, औरंगाबाद के गोह और नवादा में केन्द्रीय विद्यालय को स्वीकृति दिलाने और शिक्षा के सुधार को लेकर लगातार संघर्ष करते रहने जैसे काम हैं।
पप्पू यादव
प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन ने पप्पू यादव को अपना सीएम प्रत्याशी बनाया है। पप्पू पहली बार 1990 में सिंहेश्वरस्थान से निर्दलीय विधायक चुने गये थे। वह पहली बार 1991 में पूर्णिया से सांसद चुने गए। उसके बाद पांच बार सांसद रहे हैं। वर्ष 2015 में उन्हें लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया था। वर्ष 2015 में ही उन्होंने अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) बनाई थ।
पप्पू यादव के नाम कई समाजिक कार्य हैं। पिछले साल बाढ़ के दौरान उन्होंने पटना के कई घरों में सहायता पहुंचाई। इसके पहले भी हर आपदा में वह लोगों के साथ खड़े रहते हैं।
पुष्पम प्रिया चौधरी
बिहार विधानसभा चुनाव में पुष्पम प्रिया चौधरी स्वघोषित सीएम उम्मीदवार हैं। उनके साथ किसी भी दल ने कोई गठबंधन नहीं किया है। वह जदयू के पूर्व एमएलसी विनोद चौधरी की पुत्री हैं। पुष्पम प्रिया चौधरी पहली बार मार्च 2020 में राजनीति में आई और प्लुरल्स पार्टी बनाई। उन्होंने राजनीति में आते ही खुद को बतौर मुख्यमंत्री पेश कर दिया। राजनीति में अब तक उनकी कोई उपलब्धि नहीं रही है। इस बार चुनाव में उन्होंने सभी सीटों पर उम्मीदवार देने की घोषणा की है।
चिराग पासवान
पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी वेसे तो एनडीए का घटक दल है। लेकिन चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी अलग राह पकड़ी है। चिराग की पार्टी बिहार में जेडीयू के खिलाफ चुनाव लड़ रही है। हालांकि चिराग पासवान ने खुद अपने मुंह से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी अभी नहीं की है। लेकिन उनकी पार्टी ने उन्हें सीएम का चेहरा घोषित कर दिया है।
अभिनेता से नेता बने चिराग पासवान पहली बार 2014 में जमुई से लोकसभा चुनाव लड़कर सांसद बने थे। इसके बाद पुनः 2019 में दोबारा सांसद चुने गये। उनकी पार्टी 2015 में 42 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन केवल 2 सीट पर ही जीत हासिल हुई थी। इस बार करीब 120 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है।