जल्दी ही सृष्टि से गायब हो जाएंगे बद्रीविशाल!… होगी ‘भविष्य बद्री’ की पूजा

-सुई की गोलाई के आकार का रह गया है नृसिंह भगवान की मूर्ति का हाथ
-कलाई अलग होते ही मिल जाएंगे जय-विजय पर्वत, बंद होगा रास्ता
-नृसिंह भगवान की जयंती पर विशेष

आचार्य रामगोपाल शुक्ल/ नई दिल्ली
‘‘जल्दी ही बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जायेगा। श्री हरि बद्रीविशाल सृष्टि से गायब हो जाएंगे।’’ यह बात हम नहीं कर रहे, बल्कि ऐसी पौराणिक मान्यताएं हैं। दरअसल बद्रीनाथ धाम का जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति से एक खास जुड़ाव यानी कि रिश्ता है। इस मुर्ति के बारे में यह मान्यता है कि जिस दिन इस मूर्ति का एक हाथ (बांई कलाई) अलग हो जायेगा, उसी दिन प्रलय (आपदा) आयेगी और बद्रीनाथ धाम का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो जायेगा।

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फिलहाल जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ कुछ हिस्सा हर साल लगातार अपने आप पतला होता जा रहा है। वर्तमान समय में नृसिंह भगवान के हाथ का वह हिस्सा (बांई कलाई) सुई की गोलाई के बराबर का रह गया है। मान्यता है कि जिस दिन यह हाथ मूर्ति से अलग हो जायेगा, उसी दिन नारायण पर्वत की दो चोटियां (जय-विजय पर्वत) आपस में मिल जाएंगे। इसी के साथ उसी क्षण बद्रीनाथ धाम का रासता पूरी तरह से बंद हो जायेगा और इसके बाद लोग उनके दर्शन नहीं कर पायेंगे।

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भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नृसिंह (Lord Narsingh) की 25 मई 2021, मंगलवार को जयंती (Birth day) मनायी गई है। वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चर्तुदशी को भगवान नृसिंह ने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए हिरण्यकश्यप को मारने यह अवतार लिया था। भगवान नृसिंह दैत्य राजा हिरण्यकश्यप को मारने के लिए खंभे को फाड़कर प्रकट हुए थे और उन्होंने आधा रूप नर का और आधा सिंह का रखा था, इसलिए उन्हें नरसिंह कहा गया। भगवान नृसिंह के वैसे तो कई मंदिर हैं लेकिन उत्तराखंड (Uttarakhand) के चामोली जिले के जोशीमठ में स्थित यह मंदिर बहुत खास है। इस मंदिर को लेकर एक मान्यता है, जिसका सीधा संबंध आपदा से है।

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कुछ ही महीने पहले उत्तराखंड के चामोली जिले में आई तबाही ने कई लोगों की जान ले ली थी। इसी जिले के जोशीमठ में भगवान नृसिंह को समर्पित एक मंदिर है। सप्त बद्री में से एक होने के कारण इस मंदिर को नारसिंघ बद्री या नरसिंह बद्री (छंतेपदही ठंकतप) भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बद्रीनाथ धाम और केदारनाथ धाम आने वाले कुछ वर्षों में लुप्त हो जायेंगे। इसके कुछ वर्षों बाद यानी कि भविष्य में ‘भविष्यबद्री’ नामक तीर्थ स्थान का उद्गम होगा। यानी कि वर्तमान बद्रीविशाल भविष्य में जोशीमठ से 22 किलोमीटर दूर भविष्यबद्री के रूप में प्रकट होकर लोगों को दर्शन देंगे। स्थानीय लोगों में मान्यता है कि भविष्यबद्री में एक बड़े शिलाखंड पर आश्चर्यजनक रूप से भगवान विष्णु की मूर्ति धीरे-धीरे आकार ले रही है।
उपवन में है भविष्यबद्री का मंदिर
भविष्य के बद्रीनाथ का मंदिर उपवन में स्थित है। यह जोशीमठ से 22 किलोमीटर दूर पूरब में लता की ओर स्थित है। धौलीगंगा से ऊपर करीब 3 किलोमीटर आगे ट्रैक पर तपोवन के दूसरी ओर है ओर सड़क से इसकी ऊंचाई 2744 मीटर है। यह रास्ता फिलहाल बेहद खतरनाक है और धौली गंगा यानी सफेद पानी की गंगा के किनारे का रास्ता काफी कठिन है। मान्यता है कि एक दिन जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ गिर जायेगा और विष्णु प्रयाग के पास पतमिला में जय और विजय पर्वत भी गिरकर एक हो जायेंगे। ऐसे में बद्रीविशाल लुप्त हो जायेंगे और भविष्य बद्री की पूजा की जाऐगी व भगवान विष्णु के अवतार कल्की कलियुग का अंत करेंगे और सतयुग की शुरूआत होगी।
6 महीने योग निद्रा में लीन रहते हैं श्री हरि
चार प्रमुख धामों में से एक बद्रीनाथ धाम भगवान श्री हरि के परम धामों में से एक है और इसे सृष्टि का आठवां बैकुंठ धाम माना जाता है। हिमालय की श्रंखलाओं में स्थित है इस धाम में भगवान श्री हरि छह माह के लिए याग निद्रा में लीन रहते हैं। इसके पश्चात छह माह तक अपने भक्तों के दर्शन देते हैं। खास बात है कि मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थित भगवान बद्रीविशाल की मूर्ति शालिग्राम शिला से बनी हुई चतुर्भुज आकार में ध्याम मुद्रा में है। सनातन संस्कृति में इस धाम का महत्वपूर्ण स्थान है। बद्रीनाथ धाम समुद्र तल से 3,050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहां पहुंचने का रास्ता बेहद ही दुर्गम है।
श्री हरि बद्रीविशाल के पट बंद होने पर भी मंदिर में एक अखंड दीपक प्रज्वलित रहता है। हिमालय पर्व पर स्थित इस स्थान पर जंगली बेरी बहुतायत मात्रा में पायी जाती है और माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को यहां बेरी पेड़ के ऊपर ध्यान मुद्रा में पाया था और उन्होंने ही श्री हरि को बद्री का नाम दिया था।
सृष्टि का आठवां बैकुंठ है बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां बैकुंठ कहा जाता है। मान्यत के अनुसार जब गंगा नदी पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं, तब यह 12 धाराओं में बंट गई थीं। बद्रीनाथ धाम के पास स्थित धारा को अलकनंदा के नाम से जाना जाता है। यहीं पर भगवान विष्णु का वास बना। अलकनंदा की साथ ही बहने वाली मंदाकिनी नदी के किनारे केदार घाटी स्थित है, यहां 12 में से ग्यारहवें ज्योतिर्लंग केदारेश्वर विराजमान हैं। मान्यता है कि पूरा इलाका रूद्रप्रयाग जिले में आता है और रूद्रप्रयाग में ही भगवान रूद्र का अवतान हुआ था।
जानें बद्रीनाथ की कथा
मान्यताओं के अनुसार सतयुग में देवताओं, िऋषि-मुनियों और सामान्य मनुष्यों को भगवान विष्णु के साक्षात दर्शन होते थे। लेकिन त्रेतायुग में भगवान केवल देवताओं और िऋषि-मुनियों को ही दर्शन देते थे। द्वापर युग आते-आते भगवान अनंत में विलीन हो गये और िऋषि-मुनियों और सामान्य जनों को उनके विग्रह से दर्शन से संतुष्ट होना पड़ा। शास्त्रों के मुताबिक द्वापर युग आते-आते पाप-कर्म बढ़ता चला गया और भगवान के दर्शन दुर्लभ होते चले गये।
वर्तमान में कलियुग चल रहा है और पुराणों में बद्रीनाथ और केदारनाथ के रूष्ट होने का वर्णन मिलता है। इसके अनुसार कलियुग के पांच हजार वर्ष बीत जाने पर पृथ्वी पर पाप का ही राज्य होगा। लोगों की आस्था लोभ, लालच और काम के प्रति बहुत अधिक होगी। चारों ओर ढोंगी-पाखंडियों का ही बोलबाला होगा। ढोंगी संत बनकर धर्म की गलत ब्याख्या करके समाज को दिग्भ्रमित करेंगे। ऐसे में पापनासिनी गंगा वापस स्वर्ग लौट जायेंगी।
प्रकृति ने तय किया परिवर्तन… आदि बद्री से भविष्य बद्री तक
कहा जाता है कि परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है। इसी तरह आदि बद्री से भविष्य बद्री के परिवर्तनों को इस तरह से समझा जा सकता है। आदि बद्री मंदिर प्राचीन मंदिर का एक समूह और बद्रीविशाल मंदिर के अवतारों में से एक है। इस मंदिर का प्राचीन नाम ‘नारायण मठ’ हुआ करता था। कर्णप्रयाग से करीब 16 किलोमीटर दूरी पर 16 प्राचीन मंदिर हैं। लेकिन वर्तमान समय में इन 16 में से केवल 14 मंदिर ही शेष बचे हैं। खास बात है कि आदि बद्री मंदिर की बनावट पिरामिड के आकार की है और इसे भगवान नारायण की तपोस्थली कहा जाता है।
आदि बद्री मंदिर के संबंध में यह मान्यता है कि भगवान विष्णु पहले तीन युगों यानी कि सतयुग, त्रेता और द्वापर युग में आदि बद्री मंदिर में ही बद्रीनाथ के रूप में रहते थे। लेकिन कलियुग में वह वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर में चले गये थे। इसके साथ ही आने वाले दिनों में जब बद्रीनाथ धाम का रास्ता बंद हो जायेगा, तब श्री हरि फिर से आदि बद्री मंदिर में स्थानांतरित हो जायेंगे। इस छोटे से स्थान यानी के साढ़े 12 मीटर गुणा 25 मीटर के स्थान में 16 मंदिर स्थित हैं। आदि बद्री मंदिर पंच बद्री मंदिर (जो कि आदि बद्री, विशाल बद्री, योग-ध्यान बद्री, वृद्ध बद्री और भविष्य बद्री के नाम से जाने जाते हैं) श्री हरि बद्रीनाथ को समर्पित हैं। मान्यता के अनुसार कलियुग की समाप्ति पर बद्रीविशाल को भविष्य बद्री में स्थानांतरिक कर दिया जायेगा।