बीजेपी शासित नगर निगम खस्ता हाल… स्वास्थ्य सेवाओं से खड़े किये हाथ… सरकार को सोंपेंगे मेडिकल कॉलेज व अस्पताल

-सालाना 500 से 600 करोड़ रूपये का भार बचाने की कवायद
-निगम के 6 बड़े अस्पताल व 131 अन्य स्वास्थ्य संस्थान दांव पर

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
उत्तरी दिल्ली नगर निगम की हालत बद से और ज्यादा बदतर हो गई है। भारतीय जनता पार्टी शासित नगर निगम ने अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को संभालने में हाथ खड़े कर दिये हैं। इसके चलते अब उत्तरी दिल्ली नगर निगम के 5 बड़े अस्पतालों, 1 कालोनी अस्पताल और 131 पॉलीक्लीनिक, मेटरनिटी होम, डिस्पेंसरी, चाइल्ड वेलफेयर होम, चेस्ट क्लीनिक व अन्य स्वास्थ्य संबंधी संस्थानों को केंद्र अथवा दिल्ली सरकार को सोंपने का फैसला किया है। खास बात है कि नगर निगम की अतिमहत्वाकांक्षी परियोजना हिंदू राव मेडिकल कॉलेज को भी सरकार के हवाले करने का प्रस्ताव है।

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नगर निगम की स्वास्थ्य सेवाओं को सरकार के हवाले करने के प्रस्ताव को बुधवार 1 सितंबर 2021 को होने वाली स्थायी समिति की बैठक में आइटम संख्या 63 के तहत लाया जा रहा है। प्रस्ताव में आयुक्त की ओर से कहा गया है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम की हालत अब ऐसी नहीं है कि अपने अस्पतालों और दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं को चलाया जा सके। नगर निगम के पास स्टाफ का वेतन देने और अस्पतालों व स्वास्थ्य सेवाओं को बहाल रखने के लिए पैसा नहीं है। इसलिए इनके संचालन का काम केंद्र सरकार या दिल्ली सरकार के हाथों में दिया जाये।

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बता दें कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के पास हिंदू राव अस्पताल, कस्तूरबा अस्पताल, राजन बाबू अस्पताल, गिरिधर लाल अस्पताल, महर्षि वाल्मीकि अस्पताल और बालक राम अस्पताल का संचालन किया जाता है। इनके अलावा 17 पॉलीक्लीनिक, 6 मेटरनिटी होम, 29 डिस्पेंसरी, 59 मेटरनिटी एवं चाइल्ड वेलफेयर सेंटर्स, 7 चेस्ट क्लीनिक, 11 मोबाइल वैन, 1 प्राइमरी अर्बन हेल्थ सेंटर और 1 वीडी क्लीनिक का संचालन किया जाता है। नॉन प्लान के तहत उत्तरी दिल्ली नगर निगम को अस्पतालों के स्टाफ की सेलरी और कुछ अन्य मदों में 2018-19 में 370.03 करोड़, 2019-20 में 344.04 करोड़ और 2020-21 में 355.46 करोड़ रूपये खर्च करना पड़ा है।

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22 एकड़ क्षेत्रफल में फैले हिंदू राव अस्पताल में कुल 980 बेड की सुविधा है। 4.37 एकड़ में फैले कस्तूरबा अस्पताल में कुल 450 बेड की सुविधा है। 72 एकड़ क्षेत्रफल वाले राजन बाबू टीबी अस्पताल में 1155 बेड की सुविधा है। गिरिधर लाल अस्पताल कुल 1.93 क्षेत्रफल में बना है और यहां कुल 97 बेड की सुविधा है। जबकि 37 एकड़ में फैले महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में कुल 227 बेड की सुविधा है। वहीं 3.2 एकड़ क्षेत्रफल वाले बालक राम अस्पताल में फिलहाल ओपीडी की सुविधा ही प्राप्त है। हालांकि यहां 200 बेड की सुविधा प्रदान करने का काम जारी होने का दावा किया जा रहा है।
कम होगा सालाना 500 से 600 करोड़ रूपये का भार
उत्तरी दिल्ली के निगम आयुक्त के मुताबिक यहां स्वास्थ्य सेवाओं पर सालाना करीब 425 करोड़ रूपये का खर्च आ रहा है। इसमें विभिन्न अस्प्तालों में होने वाले मरम्मत कार्य और उपकरणों की खरीदारी व देखभाल का खर्च शामिल नहीं है। यह खर्च तब है जबकि 30 फीसदी से ज्यादा स्वीकृत पद निगम के स्वास्थ्य विभाग में खाली पड़े हैं। पिछले कई वर्षों से ठेकेदारों का भी भुगतान नहीं कियागया है। इसके अतिरिक्त नगर निगम ने मेडिकल कॉलेज शुरू करके अपने सिर सालाना 16 करोड़ रूपये का खर्च और डाल लिया है। अक्टूबर 2016 में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हो गई थीं, लेकिन कर्मचारियों का वह ऐरियर भी नहीं दिया जा सका है। यदि इन सभी को जोड़ लिया जाये तो यह आर्थिक भार 500 से 600 करोड़ तक पहुंच जाता है। यदि निगम की स्वास्थ्य सेवाओं को सरकार के हवाले कर दिया जाता है तो निगम के ऊपर यह भार कम हो जायेगा।
स्थायी समिति की बैठक में लाये जा रहे आइटम संख्या 63 के मुताबिक निगम के स्वास्थ्य संस्थानों में विभिन्न श्रेणी के अधिकारियों और कर्मचारियों के स्वीकृत पदों की संख्या कुल 6773 है। जबकि इनमें से 3026 पोस्ट खाली पड़ी हैं। यदि सभी पोस्ट भरी हों तो निगम के ऊपर और ज्यादा भार पड़ेगा। यह स्थिति तो तब है जबकि पिछले कई वर्षों से कार्यभार और स्वीकृत पदों की समीक्षा ही नहीं हुई है। यदि ऐसा होता है तो नगर निगम के ऊपर पड़ने वाला आर्थिक बोझ और बढ़ जायेगा।
योजनाएं लागू करने के लिए 1844 करोड़ की जरूरत
निगम आयुक्त द्वारा स्थायी समिति में लाये जा रहे आइटम संख्या 63 के मुताबिक नगर निगम को अपनी अधूरी स्वास्थ्य सेवाओं को पूरा या अपग्रेड करने के लिए तुरंत 1844 करोड़ रूपये की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो स्वास्थ्य सेवाओं का और भी ज्यादा बुरा हाल हो जायेगा। प्रस्ताव के मुताबिक कस्तूरबा गांधी अस्पताल में नया मल्टीस्पेशियलिटी ब्लॉक का निर्माण एवं स्थापना प्रस्तावित है। इस पर करीब 1100 करोड़ रूपये का खर्च आयेगा। इसी तरह हिंदू राव अस्पताल में एक नया मल्टी स्टोरी ब्लॉक का निर्माण प्रस्तावित है, इस पर करीब 600 करोड़ रूपये की लागत आयेगी। हिंदू राव अस्पताल में करीब 40 करोड़ रूपये की लागत से एक ऑपरेशन थियेटर कॉम्पलेक्स बनाया जाना प्रस्तावित है। इसी तरह हिंदू राव अस्पताल में ही करीब 40 करोड़ रूपये की लागत से एक हॉस्टल का निर्माण भी किया जाना है।
सिविल कार्य कराने में असमर्थ नगर निगम
स्थायी समिति में लाये जा रहे प्रस्ताव के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग में करीब 10 करोड़ रूपये की कैश लायबिलिटी पेंडिंग है और करीब 54 करोड़ रूपये की कमिटिड लायबिलिटी सिविल वर्क्स के चलते इस समय पेंडिंग है। नगर निगम आर्थिक तंगी के चलते यह भुगतान नहीं कर पा रहा है। इसकी वजह से बाकी के छोटे-छोटे सिविल कार्य भी नगर निगम अपने अस्पतालों व दूसरे स्वास्थ्य संस्थानों में नहीं करवा पा रहा है। दिल्ली सरकार द्वारा निगम की स्वास्थ्य विभाग के सिविल कार्यों के लिए सालाना महज 5 से 6 करोड़ रूपये का आबंटन किया जाता है, इस राशि में निगम अस्पतालों के सिविल कार्य कराना संभव नहीं है। 16 करोड़ रूपये सालाना का आर्थिक भार मेडिकल कॉलेज की वजह से नगर निगम के ऊपर पड़ रहा है। लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से मेडिकल कॉलेज के द्वारा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मापदंडों को पूरा कर पाना मुश्किल हो रहा है।
कोर्ट के डंडे से जागे निगम अधिकारी
1 सितंबर को स्थायी समिति की बैठक में स्वास्थ्य सेवाओं को सरकार के हवाले करने के लिए लाया जाने वाला पुनर्विचार के लिए प्रस्ताव कोर्ट के डंडे की वजह से लाया जा रहा है। निगम आयुक्त ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट ने भी प्राथमिक शिक्षक संघ बनाम ज्ञानेश भारती मामले में 8 जुलाई 2021 को कहा है कि यदि नगर निगम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को सही ढंग से नहीं चला पा रहा है तो इन सेवाओं को केंद्र या दिल्ली सरकार को सोंपने पर विचार करे। नगर निगम की वर्तमान स्थिति ऐसी नहीं है कि अपनी स्वास्थ्य सेवाओं को चला सके। अतः स्थायी समिति द्वारा इस प्रस्ताव पर विचार किया जाये।
बता दें कि इससे पहले इन अस्पतालों को केंद्र सरकार को सोंपने के लिए फरवरी 2018 में स्थायी समिति के सामने आइटम संख्या 84 के तहत लाया गया था। लेकिन तब इसे 21 मार्च 2018 की स्थायी समिति द्वारा प्रस्ताव संख्या 180 के द्वारा रद्द कर दिया गया था। अब उसी प्रस्ताव को ताजा आंकड़ों के साथ फिर से स्थायी समिति में पुनर्विचार के लिए लाया जा रहा है।
बीजेपी नेतृत्व की नाकामीः आप
बीजेपी नेता भले ही निगम अस्पतालों की सेवाओं की तारीफों के कसीदे पढ़ते रहे हों लेकिन निगम आयुक्त द्वारा लाये जा रहे प्रस्ताव ने दिल्ली बीजेपी नेतृत्व की पोल खोलकर रख दी है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम में प्रतिपक्ष के नेता विकास गोयल ने कहा कि हम लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि यदि बीजेपी शासित नगर निगम स्वास्थ्य सेवाओं को नहीं चला पा रहा तो दिल्ली सरकार को दे दिया जाये। नगर निगम की यह हालत बीजेपी के 15 साल के साशन की वजह से हुई है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता खुद उत्तरी दिल्ली नगर निगम में निगम पार्षद हैं। वह यहां के महापौर भी रह चुके हैं। उन्हें निगम की सारी स्थिति का ज्ञान है। इसके बावजूद निगम की स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल होती जा रही हैं। इसके लिए पूरी तरह से दिल्ली बीजेपी का नेतृत्व जिम्मेदार है।
बीजेपी-आप ने मिलकर बिगाड़ी निगम की स्वास्थ्य सेवाओं की सेहतः कांग्रेस

उत्तरी दिल्ली नगर निगम में कांग्रेस दल के नेता मुकेश गोयल ने कहा कि नगर निगम की हालत अपनी वजह से कम और आम आदमी पार्टी व भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की आपसी राजनीति की वजह से ज्यादा खराब हुई है। दिल्ली सरकार ने नगर निगम को मिलने वाली कई मदों की राशि को पूरी तरह से बंद कर दिया है। इसकी वजह से नगर निगम लगातार आर्थिक संकट में फंसता जा रहा है। दूसरी ओर निगम में सत्ताधारी बीजेपी के नेता नगर निगम के अपने स्रोतों से आय प्राप्त कर पाने में नाकाम साबित हुए हैं। हम लंबे समय से मांग करते आ रहे हैं कि निगम की स्वास्थ्य सेवाओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन सत्ताधारी बीजेपी के नेता केवल अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुए हैं।
अभी विचाराधीन है प्रस्तावः जैन
उत्तरी दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष जोगीराम जैन का कहना है कि यह प्रस्ताव अभी विचाराधीन है। हम अभी सभी परिस्थितियों पर विचार कर रह हैं। नगर निगम की आर्थिक हालत किसी से छिपी नहीं है। हमारे अधिकारी और हम सब मिलकर निगम की हालत को संभालने की कोशिश में जुट हैं। इस प्रस्ताव पर स्थायी समिति में विचार किया जायेगा और जो सभी सदस्यों का फैसला होगा, वही किया जायेगा।