उत्तरी निगम में एक और मिड-डे मील घोटाला… गरीब बच्चों के मुंह से छीना निबाला!

-दाल के स्थान पर काला चना और वनस्पति घी के स्थान पर बांट दिया पामोलीन
-बीजेपी शासित निगम में गरीब बच्चों के मिड-डे मील में करोड़ों रूपये का घोटाला

हीरेन्द्र सिंह राठौड़/ नई दिल्ली
आर्थिक तंगी से जूझ रहे दिल्ली के नगर निगमों में एक के बाद एक घोटाला सामने आ रहा है। भारतीय जनता पार्टी शासित उत्तरी दिल्ली नगर निगम में एक बार फिर मिड-डे मील घोटाला सामने आया है। गरीब बच्चों को मिड-डे मील के रूप में मिलने वाले ड्राई राशन का निबाला एक बार फिर छिन गया है। बच्चों को दाल के स्थान पर काला चना और वनस्पति घी के स्थान पर पामोलीन बांटा गया है। बच्चों को दी जाने वाली सूखे राशन की किट के बजन में भी घोटाला किया गया है। बताया जा रहा है कि ऐसा करके निगम अधिकारियों और माफिया ने करोड़ों रूपये की हेरा-फेरी की है। मामला निगम आयुक्त संजय गोयल के संज्ञान में तो आ चुका है लेकिन इस बारे में अभी तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं की गई है।

दाल के स्थान पर काला चना

निगम विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को तीन माह मिड-डे मील के रूप में सूखे राशन की किट दी जा रही है। फिलहाल निगम अधिकारी समय रहते एफसीआई के गोदामों से गेहूं और चावल नहीं उठा सके। जिसकी वजह से केवल दालें और वनस्पति घी ही बांटा जा रहा है। लेकिन इसमें भी निगम अधिकारियों ने घोटाला कर डाला। इस किट में 2 लीटर वनस्पति घी और 7 किलो 225 ग्राम दालें इन बच्चों को दी जानी थीं। लेकिन तैयार कराई गई किट में दालों के बजाय काला चना और वनस्पति घी के बजाच पामोलीन पैक करा दिया गया। ज्यादातर विद्यालयों में इसे बांट भी दिया गया।
लेकिन जब यह राशन की किट मंगोलपुरी इलाके में बच्चों को बांटी जा रही थीं। तब स्थानीय निगम पार्षद कृष्णा की नजर में इस घोटाले की बात आ गई। उन्होंने किट खुलवाकर देखी तो इसमें दाल के स्थान पर काला चना और वनस्पति घी के स्थान पर पामोलीन की थैलियां पाई गईं। किट में दालों का वजन 7 किलो 223 ग्राम होना चाहिए था, लेकिन इस किट का वजन 6 किलो 974 ग्राम निकला। यानी कि असली सामान में तो हेरा-फेरी की ही गई, सामान के वजन में भी हेरा-फेरी कर दी गई।

बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि खुले बाजार में काला चना और चने की दाल में करीब 15 रूपये प्रति किलो ग्राम का अंतर है। इसी तरह वनस्पति घी और पामोलीन के भाव में भी करीब 30 रूपये

वनस्पति घी के स्थान पर पामोलीन

प्रति लीटर का अंतर है। दावे के मुताबिक उत्तरी दिल्ली नगर निगम के विद्यालयों में करीब 3 लाख बच्चे पढ़ते हैं। इस लिहाज से दालों करीब 3 करोड़, 25 लाख, 3 हजार 500 रूपये और वनस्पति घी यानी कि पामोलीन में करीब 1 करोड़ 80 लाख रूपये का घोटाला किया गया है। यदि वजन में की गई घटतौली को भी मिला लिया जाये तो करीब साढ़े पांच करोड़ का घोटाला किया गया है।
गौरतलब है कि उत्तरी दिल्ली नगर निगम के प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को बीते करीब सवा साल से मिड-डे मील नहीं दिया गया है। पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोरोना के चलते बच्चों को तैयार भोजन के बजाय सूखे राशन की किट दी जानी चाहिये। किट में गेहूं और चावल के साथ दालें और तेल भी दिया जाना था। लेकिन अधिकारियों और सत्ताधारी नेताओं की उपेक्षा के चलते यह काम समय से नहीं किया जा सका। अब इन बच्चों को तीन महीने का राशन यानी गेहूं, चावल, दालें और तेल दिया जाना था। लेकिन इसमें भी केवल दालें और तेल दिया जा रहा है। लेकिन भ्रष्टाचार के लिए मशहूर नगर निगम में एक बार फिर गरीब बच्चों के सूखे राशन की किट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।

7 किलो 223 ग्राम के स्थान पर 6 किलो 974 ग्राम

पहले भी विवादों में रहा मिड-डे मील वितरण
इससे पहले भी उत्तरी दिल्ली नगर निगम में मिड-डे मील के वितरण पर सवाल उठ चुके हैं। पिछले दिनों जब इसकी शुरूआत की जा रही थी, तब एक अधिकारी ने दो कदम आगे बढ़ते हुए केवल ऑनलाइन कक्षाओं में भागीदारी करने वाले बच्चों को ही मिड-डे मील की किट बांटने का फरमान सुना दिया था। मामले में विवाद उठने पर पूरी दिल्ली बीजेपी बैकफुट पर आ गई थी। निगम के नेताओं ने दावा किया था कि इस मामले में सख्त कार्रवाई की जा रही है। लेकिन अभी तक उस मामले में भी किसी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी है।
बढ़ेंगी बीजेपी की मुश्किलें
मिड-डे मील के वितरण में ताजा घोटाला सामने आने के बाद दिल्ली बीजेपी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। प्रदेश बीजेपी नेतृत्व एक बार फिर आम आदमी पार्टी के निशाने पर है। मिड-डे मील में इतना बड़ा घोटाला हो गया, लेकिन निगम में सत्ताधारी दल के नेताओं को इसकी भनक तक नहीं लगी है। यही कारण है कि महापौर और स्थायी समिति अध्यक्ष की ओर से इस मामले में अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया जा सका है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि मिड-डे मील के इस घोटाले में निगम के कुछ अधिकारियों और निगम के नेतृत्व में से कुछ नेताओं की मिलीभगत है।