-राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री को छोड़नी पड़ी थी अपनी कुर्सी
-35 साल बाद अदालत ने 11 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया
टीम एटूजैड/ मथुरा-भरतपुर
सियासी संग्राम को लेकर राजस्थान राज्य इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में है। लेकिन अब से 35 साल पहले भी यहां एक सियासी संग्राम छिड़ा था। तब सियासी बदले के लिए भरतपुर के राजा मानसिंह का फर्जी एनकाउंटर कर दिया गया था। लेकिन इसके चलते राजस्थान से लेकर दिल्ली तक उठी विरोध की चिंगारी के चलते राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। अब 35 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने उस समय फर्जी मुठभेड़ में शामिल 11 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया है।
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यह कहानी है भरतपुर के राजा मान सिंह की। उन्हें किसानी और खुद्दारी पसंद थी। राजा का मन जनता की सेवा में खूब रमता था। वह किसानों के राजा और राजाओं में किसान थे। आजादी से पहले उन्होंने ब्रिटेन से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट बन गए। लेकिन अग्रेजों से ज्यादा निभी नहीं तो नौकरी छोड़ दी। खास बात यह कि 1952 से लेकर 1984 तक भरतपुर के डीग से वह 7 बार निर्दलीय विधायक चुने गए।
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दगाबाजी बर्दाश्त नहीं हुई और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री के हेलिकॉप्टर को अपनी जीप से टक्कर मार दी। मुख्यमंत्री की जनसभा के लिए सजाए गए मंच को तोड़फोड़ दिया। लेकिन अगले दिन राजस्थान पुलिस ने उन्हें घेर कर मार डाला। इस हत्या को पुलिस की ओर से मुठभेड़ का नाम दिया गया। लेकिन अब 35 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने उस मुठभेड़ को फर्जी मानते हुए 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है।
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भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह अपने चार भाइयों में तीसरे नंबर पर थे। उनका जन्म 1921 में हुआ था। बड़े भाई बृजेंद्र सिंह महाराज हुआ करते थे। मानसिंह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे अतः उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने ब्रिटेन भेजा गया। वहां से डिग्री लेने के बाद वह अंग्रेजी सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट हो गए। लेकिन यह बात अपने बड़े भाई को नहीं बताई। भरतपुर रियासत के लोग गाड़ियों और महल में दो झंडे लगाते थे एक देश का और दूसरा अपनी रियासत का। अंग्रेजों से इसी बात पर इनकी अनबन हो गई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी। देश आजाद हुआ तो वह आजादी के बाद राजनीति में आ गए।
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उस समय कांग्रेस ही एक मात्र ऐसा दल था, जिसकी सरकारें ज्यादातर राज्यों में थीं। लेकिन राजा मानसिंह को किसी दल में जाना मंजूर नहीं था। इसलिए कांग्रेस से उनका समझौता था कि वह उनके खिलाफ उम्मीदवार भले उतारे लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आएगा। 1952 से 1984 तक वह डीग विधानसभा क्षेत्र से लगातार निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे। 1977 की जनता लहर और 1980 की इंदिरा लहर में भी राजा मानसिंह अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। लेकिन कांग्रेस में ही कुछ लोगों को यह बात खटकती रही कि आखिर भरतपुर रियासत में दो झंडे क्यों लगाए जाते हैं। मानसिंह को कांग्रेस वॉक ओवर क्यों देती है? अगर हम दूसरी सीटें जीत सकते हैं तो डीग की सीट क्यों नहीं जीत सकते?
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई। पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी। 1985 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे। तब राजस्थान के मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर हुआ करते थे। बताया जाता है कि उन्होंने डीग की सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था और हर हालत में वह इस सीट को जीतना चाहते थे। उन्होंने रिटायर्ड आईएएस बिजेंद्र सिंह को डीग से कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित कर दिया और 20 फरवरी 1985 को उनका प्रचार करने डीग पहुंच गए। इससे पहले कांग्रेस के उत्साहित कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर राजा मानसिंह के पोस्टर, बैनर और रियासत के झंडों को फाड़ दिया।
राजा मानसिंह को यह बात नागवार गुजरी। शिवचरण माथुर के पहुंचने से पहले ही वह अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के सभास्थल पर पहुंच गए और मंच को तहस-नहस कर दिया। इसके बाद वह अपनी जोंगा जीप से हेलिपैड की तरफ निकले जहां सीएम शिवचरण माथुर का हेलिकॉप्टर खड़ा था। सीएम माथुर सभा स्थल की ओर निकल चुके थे और राजा मानसिंह हेलिपैड पर पहुंच गए। तमतमाए राजा मानसिंह ने अपनी जोंगा जीप से हेलिकॉप्टर को कई बार टक्कर मारी। इसका नतीजा यह निकला कि हेलीकाप्टर क्षतिग्रस्त हो गया और माथुर को वापस सड़क मार्ग से जयपुर जाना पड़ा।
तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने जयपुर पहुंचकर पुलिस के आला अधिकारियों को जमकर झाड़ लगाई और राजा मानसिंह के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश जारी कर दिए। इसके बाद वहां पर आक्रोश फूट पड़ा। प्रशासन की ओर से आशंका जताई गई कि कांग्रेस और राजा के समर्थक भिड़ सकते हैं। इसलिए डीग में कर्फ्यू लगा दिया गया और राजा के खिलाफ केस दर्ज करा दिया गया।
कहा जाता है कि 21 फरवरी 1985 को राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ अपनी जीप से निकले थे। उनके समर्थकों ने उन्हें मना किया था कि कांग्रेस की सरकार है और आपने सीधे मुख्यमंत्री को चुनौती दी है। कर्फ्यू भी लगा हुआ लेकिन राजा मानसिंह का कहना था उनकी रियासत में उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा। राजपरिवार का कहना है कि राजा मानसिंह उस दिन थाने में समर्पण करने जा रहे थे। तभी डीग मंडी के पास डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी और उसके साथी पुलिसकर्मियों ने उन्हें घेर लिया और ताबड़तोड़ फायरिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया। उनके साथ बैठे हरी सिंह और सुमेर सिंह की भी हत्या कर दी गई। पुलिस इसे मुठभेड़ साबित करने पर तुली रही। राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने कान सिंह भाटी समेत 18 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी।
राजा मानसिंह की हत्या की घटना के बाद पूरा भरतपुर जल उठा। इसकी तपिश मथुरा, आगरा और पूरे राजस्थान में महसूस की गई। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी सिटिंग एमएलए का दिनदहाड़े एनकाउंटर किया गया हो। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर पर आरोप लगे कि उनकी शह पर पुलिस ने राजा मानसिंह की हत्या की है। केंद्र सरकार और कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व तक यह बात पहुंची। घटना के दो दिन बाद 23 फरवरी 1985 को शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद हीरा लाल देवपुरा को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में राजा मानसिंह की पुत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा विधायक चुनी गईं। मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। इस बीच 1990 में दीपा भरतपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद चुनी गईंं। उन्होंने राजनीतिक विरासत संभालने के साथ ही इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने का प्रण लिया और उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच मथुरा ट्रांसफर कर दी।
राजा मानसिंह की हत्या के मामले की पैरवी कर रहे वकील नारायण सिंह विप्लवी का कहना है कि न्याय पाने में वर्षों लग गए। जबकि पुलिस ने राजा की नृशंस हत्या की थी। हमारी तरफ से 61 गवाह पेश किए गए और पुलिस की ओर से 16 गवाह आए। लेकिन उन्होंने गलती की थी इसलिए उनका हारना तय था।
कनपटी पर बंदूक रखकर चलाई गोली
एडवोकेट विप्लवी ने बताया कि हम यह साबित करने में सफल रहे कि राजा को घेरकर मारा गया था। पुलिस ने राजा की जीप के आगे अपनी जीप अड़ा दी थी। इसके बाद मानसिंह की कनपटी पर बंदूक रखकर गोली चलाई गई थी। वह गोली राजा के साथ बैठे 2 और लोगों के सिर में लगी और तीनों की मौके पर ही मौत हो गई। राजा मानसिंह के सीने में भी गोली मारी गई थी। यह गोली भी नजदीक से मारी गई थी। जबकि मुठभेड़ होती है तो गोली दूर से चलती है।
जीडी एंट्री के 4 मिनट में ही हो गई मुठभेड़
पुलिस ने अपनी जीडी में जिक्र किया है कि राजा मानसिंह की तलाश में पुलिस टीम निकल रही है। आश्चर्य की बात है कि इसके 4 मिनट बाद ही मुठभेड़ दिखा दी गई। पुलिस ने यह भी कहा कि राजा ने गोली चलाने के लिए हथियार निकाल लिया था, लेकिन कोर्ट में यह साबित हुआ कि राजा के पास तो कोई हथियार ही नहीं था। के की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि गवाहों ने सच-सच सारी बातें कोर्ट को बताईं और कोई गवाह अपने बयान से नहीं मुकरा।
35 साल में पड़ीं 1700 तारीख
राजा मानसिंह की हत्या के मामले में कोर्ट का फैसला आने में 35 साल लग गए। कोर्ट के फैसले के बाद राजा मानसिंह की पुत्री और पूर्व मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा ने कहा कि आज उनके पिता की आत्मा को शांति मिली है। उन्होंने बताया कि सुनवाई के दौरान 1700 तारीख पड़ीं, कई जज बदले, 35 वर्षों बाद फैसला आया है। इसमें 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट पेश की थी, इनमें से 4 की मौत हो गई। तीन साक्ष्यों के अभाव में बरी हो गए और 11 पुलिसवालों को दोषी पाया गया है। आजाद भारत का यह ऐसा फर्जी एनकाउंटर था जिसने सरकार की चूलें हिली दी थीं और मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा देना पड़ा था।